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आनन्द प्रवचन : भाग १०
तो लिखने की मेहनत और पोस्टेज ही पल्ले पड़ी। मेरा पड़ोसी इतना तिकड़मबाज है कि उसके खिलाफ कोई एक अक्षर भी सुनने को तैयार नहीं होता।"
शाह ने बातों में ही उस किसान का नाम तथा उसके खेत का नम्बर भी जान लिया। उस समय तो शाह उसे मौखिक आश्वासन देकर विदा हुए । परन्तु उन्हें रात को शय्या पर लेटने पर भी नींद न आई। दूसरे दिन शाह ने लेंड रेकार्ड आफिस में इस विषय में जांच-पड़ताल कराई तो उस किसान के पड़ोसी के रूप में जिस व्यक्ति का नाम निकला, वह शाह का खुद का पर्सनल सेक्रेटरी ही निकला।
शाह के क्रोध का पार न रहा। उन्होंने उसी समय सेक्रेटरी को बुलाकर फटकारा-तुम प्रजा के रक्षक हो या भक्षक ? तुम्ही जब प्रजा पर अन्याय करोगे तो प्रजा न्याय के लिए कहां जाएगी? मुझे हरित क्रान्ति द्वारा ईरान को समृद्ध देश बनाना है जबकि तुम जैसे स्वार्थी पदाधिकारी उसमें अवरोधक बन रहे हैं । तुम्हें यह गर्व है कि मैं शाह का पर्सनल सेक्रेटरी हूँ, मुझे कौन कहने-सुनने वाला है । मेरे दिल में तुम्हारे प्रति सख्त घृणा पैदा हो गई है । तुम्हारे खिलाफ उस किसान द्वारा दी गई सभी अर्जियाँ जिन राज्य-कर्मचारियों ने दबा दी हैं उनके प्रति भी सख्त नफरत हो गई है मुझे । इस अपराध से संलग्न सभी लोगों को मैं सजा दूंगा। नीतिज्ञों ने कहा है
विषदिग्धस्य भक्तस्य दन्तस्य चलितस्य च ।
अमात्यस्य च दुष्टस्य मूलादुद्धरणं सुखम् ॥ "विषाक्त भोजन, अत्यन्त हिलता हुआ दाँत, और दुष्ट मन्त्री इन तीनों का जड़मूल से उखाड़ना ही सुखावह होता है।"
तुम ही इस दोष के मूल हो, इसलिए मूल को ही मैं उखाड़ देता हूँ । आज से तुम्हें पर्सनल सेक्रेटरी के पद से हटाया जाता है । तुम्हें अच्छी तरह से शिक्षा मिले, इसके लिए तुम्हारी सारी जमीन जब्त की जाती है । तुम्हें दिये गये कठोर दण्ड से दूसरे राज्य-कर्मचारियों की अक्ल भी ठिकाने आ जाएगी। प्रजा के रक्षक के भक्षक बन जाने पर नतीजा कितना करुण आता है, इसकी प्रतीति इस नसीहत से मिल जाएगी।
ईरान की प्रजा ने जब यह सुना तो सुख की सांस ली और शाह के प्रति उसकी श्रद्धा बढ़ी, पर्सनल सेक्रेटरी को सबने धिक्कारा, क्योंकि शाह उस पर विश्वास रखकर राज्यकार्य का संचालन करवा रहा था।
वास्तव में मन्त्री पर बहुत बड़ी जिम्मेवारी है, वफादारीपूर्वक प्रजाहित और राज्यहित दोनों देखें। क्योंकि राज्य की नीति-रीति वही निर्धारित करता है। मन्त्री : राजा और प्रजा दोनों का हितसाधक
राजा-प्रजा के सम्बन्ध बिगड़े हों तो मन्त्री ही उन्हें सुधारता है । मन्त्री का कार्य राजा और प्रजा दोनों के बीच में कड़ी बनने का जोखिम भरा है । अगर मन्त्री
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