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आनन्द प्रवचन : भाम १०
राजा यह निःस्पृहता और अकिंचनता देखकर बहुत प्रभावित हुआ । उसने स्वामीजी को बहुत कुछ भेंट देना चाहा, पर निःस्पृह अकिंचन सन्त उसे कब स्वीकार करने वाले थे?
अकिंचन जीवन का पांचवां आवश्यक गुण है-अपरिग्रहवृत्ति । कोई व्यक्ति किसी अपरिग्रहवृत्ति के धनी के गुणों से प्रभावित होकर उन्हें कुछ भेंट देना चाहे या उनकी सुख-सुविधा के लिए कुछ करना चाहे, उस समय भी वह अकिंचन साधु उसका बिलकुल स्वीकार नहीं करता? वह किसी के लिहाज में नहीं आता । अपनी अपरिग्रहवृत्ति पर दृढ़ रहता है।
अपरिग्रहवृत्ति के चार मुख्य रूप हैं - (१) मोहबुद्धि से किसी वस्तु को ग्रहण न करना,
(२) आवश्यक एवं उपयोगी उपकरण या साधन पर भी ममता-मूर्छा न रखना, उससे अनासक्त एवं असंग रहना ।
(३) किसी मनोज्ञ सजीव या निर्जीव पदार्थ को ग्रहण करने की इच्छा, तृष्णा लालसा या वासना न जागना, और
(४) ममत्वबुद्धि से अनावश्यक और अकल्पनीय वस्तुओं का संग्रह न करना।
अकिंचन दीक्षाधारी के जीवन में अपरिग्रहवृत्ति के ये चारों रूप होते हैं। वह किसी भी वस्तु को सहजभाव से उपलब्ध होने पर उस पर ममत्वबुद्धि या ममत्वस्वामित्व स्थापित किये बिना परभाव समझकर ग्रहण करता है।
सन्त तुकाराम एक बार लोहगांव में थे। छत्रपति शिवाजी ने उनके पवित्र सद्गुणों से आकृष्ट होकर अपने खास आदमियों के साथ बहुत-सी मशालें, छत्र, घोड़े तथा बहुमूल्य जवाहरात भेजे और उनसे पूना पधारने के लिए प्रार्थना की। निःस्पृह एवं विरक्तहृदय सन्त ने उनकी भेजी हुई चीजों को छुआ तक नहीं। उन्होंने सब चीजें वापस लौटा दी और ६ अभंगों में एक पत्र लिखा, जिसका आशय यह था"मशाल, छत्र, घोड़े एवं जवाहरात आदि को लेकर मैं क्या करूँ ? ये सब मेरे लिए शुभ नहीं है । हे पंढरीनाथ ! अब मुझे इस प्रपंच में क्यों डालते हो ? मान और दम्भ का कोई भी काम मेरे लिए शूकरी विष्ठा है। मेरा चित्त जिसे नहीं चाहता, वही तुम मुझे दिया करते हो, प्रभो ! मुझे इतना तंग क्यों करते हो ? मैं संसार से अलिप्त रहना चाहता हूं, विषय का संग चाहता ही नहीं हूँ। मैं चाहता हूँ-एकान्त में रह
और किसी से कुछ भी न बोलूं। "मन चाहता है, सब विषयों को वमन के समान त्याग ,..."मैं क्या चाहता हूँ, यह आप जानते हैं, फिर भी आप मेरे सामने ऐसी-ऐसी चीजें लाकर रख देते हैं, जिनके मोह में फंसकर मैं आपको भूल जाऊँ। परन्तु नाथ ! आपके चरणों को तुका ने इतनी जोर से पकड़ लिया है कि आप उन्हें छुड़ा नहीं सकते।"
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