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३१६ आनन्द प्रवचन : भाग १०
उसकी हद के बाहर तेरी कोई नहीं मानता, मेरा मुल्क तो सारी दुनिया है, इसलिए मैं जहाँ जाता हूँ वहीं लोग मेरी बात मानते हैं । तू तो पैसा देता है, तब तेरा काम होता है, और वे तुझे सलाम करते हैं, पर मेरा काम बिना पैसे करने वाले हजारों सेवक हैं, वे मेरे चरणों में पड़ते हैं । झोली झण्डा ही हमारी शाहंशाही निशानी है । बोल, तेरी अपेक्षा हम किस बात में कम हैं ? मैं अपना अहं प्रगट करने के लिए नहीं कह रहा हूँ, वस्तुस्थिति समझाने की दृष्टि से ही मैंने अपने को शाहंशाह बताया है ।"
बादशाह धूल शाह के युक्तिसंगत उत्तर से बहुत प्रभावित हुआ और नमस्कार करके चला गया । यह है अकिंचनता के लिए आवश्यक गुण —- आत्मसन्तोष का ज्वलंत उदाहरण ।
होगा, प्रकृति पर
अकिंचन का दूसरा आवश्यक गुण है- अपने शुद्ध-आत्मा (परमात्मा) पर पूर्ण विश्वास । वैदिक तथा अन्य धर्मों में जिसे ईश्वर पर विश्वास कहते हैं । अकिंचन के अन्तर् में यह दृढ़ आस्था होती है कि जिसमें आत्मविश्वास भरोसा होगा, या प्रभु के प्रति आस्था होगी, उसे कहीं कोई कष्ट कष्ट आ भी जाए तो उसे कर्मों का फल समझकर समभाव से सह धर्म है ।
एक निःस्पृही, आत्मविश्वासी, नेकदिल, सात्त्विक और संयमी मुस्लिम महात्मा थे, नाम था – 'अम्बुहम्जा खुरासानी' । उन्हें खुदा पर इतना भरोसा था कि कल की चिन्ता बिलकुल नहीं करते थे । प्रभुभक्ति और आत्मा की शक्ति बढ़ाने में उनकी अटल आस्था थी । और थे भी मस्त और मनमौजी । प्रकृति की गोद में विचरण एवं निवास करना उन्हें अच्छा लगता था । इसलिए वे दूर- सुदूर जंगल में निकल गये । जंगल बहुत ही भयंकर, सुनसान और हिंस्र जानवरों से परिपूर्ण था, चोर-लुटेरों का भी डर था । पर वह मजबूत दिल के आत्मविश्वासी महात्मा थे । उनके मन में एक ही बात बसी हुई थी कि परमात्मा के इस राज्य में कोई भी पराया नहीं है । हम किसी का अहित नहीं करते तो दूसरा क्यों अहित करेगा ? जगत् को जो हृदय से चाहता है, उसे जगत् विष नहीं, किन्तु अमृत अर्पण करता है ।
पड़ने वाला नहीं । लेना ही अकिंचन
फलतः महात्मा मस्ती से जंगल के विकट रास्ते से चले जा रहे थे । उनके पास सामान भी कुछ नहीं था, और न यह चिन्ता थी कि शाम को क्या खायेंगे, पानी पीने के लिए पात्र भी साथ में नहीं लिया था। हाथ में सिर्फ एक डण्डा था । भिक्षा के लिए झोली भी साथ में नहीं ली । अचानक उनका हाथ जेब में गया, जेब में पड़ी हुई सोने की मुहर का स्पर्श होते ही, मानो बिच्छू ने डंक मारा हो, इस प्रकार की वेदना हुई, उन्होंने हाथ वापस खींच लिया ।
अब उनकी मानसिक शान्ति नष्ट हो गई । यह सोने की मुहर उनकी एक सांसारिक- पक्षीय बहन ने दी थी। बहन की मधुर स्मृति के रूप में उन्होंने उसे अपने
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