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उग्रतप की शोभा : शान्ति–२ १६१ कई बार मनुष्य अपने में निहित शक्तियों को पहचान नहीं पाता, और हीनभावना का शिकार होकर अपने आपको निर्बल और निःसत्त्व तथा मिट्टी का माधो मानने लगता है, निश्चेष्ट होकर गिर जाता है । जैसे कोई व्यक्ति अपने घर में गढ़े खजाने को न जानकर सोचता रहता है कि मैं निर्धन हूँ, दरिद्र हूँ, सदैव निर्धन ही रहूँगा; वैसे ही कोई व्यक्ति हीनता के रोग से ग्रस्त होकर अपने में निहित शक्ति के खजाने को जानता नहीं । लोगों के सामने कहता रहता है—मैं क्या तप-जप, नियमव्रत आदि कर सकता हूँ, मेरे में तो कोई शक्ति नहीं है। ऐसा कहना या सोचना जवानी में ही बूढ़े बन जाने के समान है। जवान आदमी हमेशा यह सोचता रहे कि मैं तो बूढ़ा हो गया, अशक्त बन गया, अब मुझसे कुछ भी न होगा, ऐसा व्यक्ति उग्रतप तो क्या करेगा, सामान्य जप-तप या नियम का भी पालन न कर सकेगा। मैंने स्वयं अनुभव किया है कि कई लोग जो नवकारसी या पौरसी का प्रत्याख्यान भी नहीं कर सकते थे, और अपने आपको दुर्बल, हीन तथा धर्मविहीन मानते थे, उन्होंने पर्युषण पर्व के मौकों पर अठाइयाँ तथा नौ-नौ उपवास तक कर लिये थे । यह शक्ति उनमें कहाँ से आ गई ? क्या किसी से उहोंने उधार ली थी या किसी ने उन्हें दे दी थी ? बस, उसकी ही आत्मा में यह शक्ति निहित एवं सुषुप्त थी, उसे प्रकट करने का संकल्प एवं उत्साह आते ही वह प्रगट हो गई।
चोर, डाकू या हत्यारे में इतना साहस और बल कहाँ से आ जाता है, दूसरों को मारने-पीटने, सताने और डाका डालने या चोरी, हत्या आदि करने में वे जैसे उन दुष्कृत्यों का अभ्यास करके अपनी शक्ति बढ़ा लेते हैं, और लगातार शक्ति उत्तरोत्तर अधिकाधिक प्रकट करते जाते हैं, वैसे ही अध्यात्मप्रिय आत्मार्थी साधक भी चाहे तो उग्रतप करने हेतु अपनी शक्ति बढ़ाकर एक दिन पराकाष्ठा पर ले जा सकता है। अभ्यास से उग्र तप करने की शक्ति भी बढ़ती जाती है ।
एक बार सर्कस के अद्भुत करतबों को देखकर राजा-रानी में विवाद खड़ा हो गया। राजा कहने लगा--"इतना अद्भुत पराक्रम किसी दैवी शक्ति की सहायता के बिना कोई प्रगट नहीं कर सकता।" इस पर रानी ने नम्रतापूर्वक कहा"प्राणनाथ ! ऐसी बात नहीं है, अभ्यास से सब कुछ साध्य है। मनुष्य अभ्यास करे तो इससे बढ़कर आश्चर्यजनक एवं प्रबल शक्ति-साध्य कार्यों में अपनी शक्ति बिना किसी दैवी सहायता के प्रकट कर सकता है।"
वैज्ञानिक जगत में आज हम आए दिन नये-नये साहसी और शक्ति-साध्य कार्य देख रहे हैं। मनुष्य ने अपनी शक्ति से जल, स्थल एवं नभ पर काबू पा लिया है, शेर जैसे शक्तिशाली एवं हाथी जैसे बलवान् को वश में कर लिया है।
प्रो. राममूर्ति बहुत शक्तिशाली पहलवान थे। वे बचपन में बहुत ही कमजोर थे। किन्तु उन्हों ने व्यायाम, प्राणायाम एवं संयम से शरीर इतना शक्तिशाली एवं सुदृढ़ बना लिया कि वे अपने प्रत्येक हाथ से एक-एक चलती कार को पकड़कर
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