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शिष्य की शोभा : विनय में प्रवृत्ति
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जीवन - विद्या कैसे और किससे प्राप्त हो सकती है ? प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तू ( Aristotle ) गुरु के सम्बन्ध में बहुत ही सुन्दर विचार प्रस्तुत करता है
Those who educate children well are more to be honoured than even their parents, for these only give them life, those the art of living well.
वे, जो कि बच्चों को सुशिक्षण देते हैं, उनका अपने माता-पिताओं की अपेक्षा उन बच्चों द्वारा अधिक आदर किया जाना चाहिए, क्योंकि माता-पिता तो केवल जीवन देते हैं, जबकि गुरु सुन्दर ढंग से जीवन जीने की कला सिखाते हैं ।
जीवन-विद्या स्कूली शिक्षा या पुस्तकीय ज्ञान नहीं है, वह है जीवन को सार्थक करने वाली, विचित्रताओं से भरे ऊबड़-खाबड़ जीवन-पथ पर आसानी से उत्साहपूर्वक चलने में सहायक | जीवन-विद्या पारसमणि है, जिसका स्पर्श पाकर डिग्री - डिप्लोमारहित साधारण जीवन भी सार्थक हो जाता है। संसार के अधिकांश महापुरुषों का अक्षर ज्ञान या स्कूली शिक्षण आज के अनेकों उच्च शिक्षा सम्पन्न डिग्री - धारियों से कम ही था, लेकिन उन्होंने अपने गुरुओं से जो जीवन-विद्या अर्जित की, उसके कारण जीवन के कठोर धरातल पर अनुशासन का कठोर कदम उठाया, अपने को कसा, माँजा और कठोर परीक्षाओं में पास हुए । संसार को उन्होंने अभिनव प्रकाशित मार्ग प्रदान किया। कबीर, रैदास, नानक, तुलसी, सूरदास, मीरां, तुकाराम, सन्त ज्ञानेश्वर आदि ने उच्च डिग्री पाये बिना ही जीवन-विद्या अर्जित करके कई ग्रन्थों या वाणियों की रचना की थी । जीवन-विद्या पाकर मनुष्य अपनी क्षमता एवं स्थिति के अनुसार ही यथार्थता की धरती पर जीवन के भव्य भवन का निर्माण कर सकता है।
बाह्य शिक्षा के साथ आन्तरिक शिक्षण का समन्वय पैदा करने से जीवनविद्या सफल हो सकती हैं। इस जीवन-विद्या के अभाव में जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता सम्भव नहीं है । अतः लोकव्यवहार से लेकर सेवा, भक्ति, परमार्थ, व्यापारव्यवसाय, उपदेश-प्रदान आदि सभी क्षेत्रों में जीवन विद्या की आवश्यकता होती है । जीवन-विद्या के अभाव में परमार्थ की दुहाई देकर रात-दिन श्रम करने वाले स्वार्थी बन जाते हैं, निष्काम सेवा के पथिक लोक संग्रह में-कामनाओं, नामनाओं की पूर्ति में लग जाते हैं, भक्तजन आसक्त और नियमों और क्रियाओं का आचरण करने वाले पाखण्डी एवं नास्तिक बन जाते हैं । जीवन-विद्या शून्य व्यक्ति धीरे-धीरे शुभ के स्थान पर अशुभ, परमार्थ की जगह स्वार्थ की साधना में तथा दूसरों की सेवा करने के बदले अपना घर भरने लग जाते हैं । वर्तमान समस्याएँ, दुःख, परेशानियाँ, कष्ट, उलझनें, संघर्ष, अशान्ति, शारीरिक-मानसिक पीड़ाओं का मूल कारण जीवन विद्या का अभाव है । ऐसी जीवन-विद्या किताबों से या रेडियो, टेलीविजन, पत्र-पत्रिकाओं आदि से प्राप्त नहीं होती, न ही आजकल के मोहग्रस्त माता-पिताओं द्वारा ही
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