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२९२ आनन्द प्रवचन : भाग १० लगें । उन्हें केवल यही चाह होती है कि वे किस प्रकार की क्रीम, स्नो और पाउडर तेल-फुलेल आदि का प्रयोग करें, जो उनके शरीर को सुगन्धित बना दे। आधुनिक तरह के कितने और कितने प्रकार के कपड़े उनके पास हैं, उन पर कौन-से रंग, किन डिजायनों की छाप होनी चाहिए और किस वेशभूषा में, किस प्रकार के मेक अप में वे लोगों के लिए आकर्षण-पात्र हो सकते हैं । ब्रह्मचर्यनिष्ठ को भला ऐसी चाह और चिन्ता क्यों होगी?
भारतीय संस्कृति में बाह्य सौन्दर्य को इतना महत्त्व नहीं दिया है, जितना आन्तरिक और स्वाभाविक सौन्दर्य को। सत्यं और शिवम् के साथ जो सुन्दरम् उपलब्ध हो, वही भारतीय ऋषियों द्वारा निर्दिष्ट और अभीष्ट था। 'सादा जीवन और उच्च विचार' (Simple living and high thinking) ही उनका जीवनमन्त्र था । वे शरीर की चर्बी बढ़ाकर उसे मोटा दिखाने तथा सौन्दर्य प्रसाधनों से कृत्रिम रूप से सजाकर सुन्दर बताने को हेय समझते थे । इसीलिए ब्रह्मचारी के लिए सौन्दर्य का प्रदर्शन करना वे अनुचित मानते थे। परन्तु आजकल बहुत-से नामधारी ब्रह्मचारियों को भी आधुनिक एवं पाश्चात्य सभ्यता का चेप लगता जा रहा है, वे भी अपने मूलभूत आन्तरिक सौन्दर्य को भूलकर कृत्रिम सौन्दर्य के चक्कर में पड़ गये हैं। उन्हें भी अपने प्रभाव, प्रदर्शन और प्रसिद्धि की बीमारी लग गई है। वास्तविक व्यक्तित्व वेश-भूषा और साज-सज्जा से प्रगट नहीं होता
ब्रह्मचर्य साधक का जीवन प्रत्यक्ष बोलता हुआ जीवन होता है, उसका वास्तविक व्यक्तित्व उसके स्वास्थ्य, संयम, आत्मिक सौन्दर्य और चारित्र से प्रगट होता है, वही जन-मन पर स्थायी होता है। ब्रह्मचर्यनिष्ठ स्वामी विवेकानन्द का व्यक्तित्व उनके संयम, स्वास्थ्य, चारित्र और आत्मिक सौन्दर्य से चमक उठा था। विदेश में, जहां उनका कोई अपना नहीं था, वहां के नर-नारी भी उनके अद्भुत व्यक्तित्व से प्रभावित हो गये थे। उनके शरीर पर साधारण वस्त्र थे, वेशभूषा भी भारतीय संन्यासी की-सी थी और चेहरे पर कोई भी सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री नहीं थी, फिर भी वे आकर्षक लगते थे। अमेरिका जैसे आधुनिक, धनकुबेर, फैशनपरस्त एवं भोगवादी देश के लोगों को भी उनकी भारतीय साधु की वेश-भूषा ने यह मानने को विवश कर दिया कि स्वाभाविक सौन्दर्य और आकर्षण वेश-भूषा और साज-सज्जा में नहीं, अपितु संयम, स्वास्थ्य और सादगी में है । अपनी साधारणतम वेश-भूषा पर हंसने वाले अमेरिकनों को जिन शब्दों में स्वामी विवेकानन्द ने और निरुत्तर लज्जित कर दिया था, वे शब्द ही भारतीय जीवन के आदर्श रहे हैं, आज भी होने चाहिए।
हँसने वाले अद्यतन सौन्दर्यजीवी अमेरिकनों से उन्होंने कहा था
“Thy tailor makes you gentleman, but it is my country, where character makes a man gentle.”
"आपका दर्जी आपको भद्रपुरुष बनाता है, जबकि हमारे देश में चारित्र ही मनुष्य को भद्रपुरुष बनाता है।"
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