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चारित्र की शोभा : ज्ञान और सुध्यान-२ २६१ बन्धुओ ! सुध्यान का महत्व तो सर्वविदित है ही, सम्यग्ज्ञान का योगदान भी चारित्र की शोभा में कम नहीं है । सम्यग्ज्ञान एक शक्ति है, एक महागुण है, जिसके द्वारा संसार की समस्त वस्तुओं के यथावस्थित स्वरूप का बोध हो जाता है, जिसके होने पर साधक परम आनन्द का अनुभव करता है । सम्यग्ज्ञान के साथ सुध्यान होने पर तो वह बड़ी से बड़ी यातना, पीड़ा, परीषह, उपसर्ग या वेदना को समभाव से, शान्ति से, समझदारी से सहन करके कृतकर्मों का फल भोगकर उन्हें क्षय कर डालता है । इसीलिए, महर्षि गौतम ने इस जीवनसूत्र में बताया है
नाणं सुझाणं चरणस्स सोहा । सम्यग्ज्ञान और सुध्यान ये दोनों मिलकर चारित्र की शोभा हैं ।
आप भी इन दोनों को जीवन में साथ लेकर अपने चारित्र को उज्ज्वल, सुशोभित और वृद्धिंगत कीजिए।
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