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५१ चारित्र को शोभा : ज्ञान और सुध्यान-१
धर्मप्रेमी बन्धुओ !
आज मैं आपको ऐसे जीवन से परिचित कराना चाहता हूँ, जो आत्मा को मोक्षगति में ले जाने वाला है, परमात्म-स्वरूप को प्राप्त कराने वाला है, वह जीवन है-ज्ञान-ध्यान से सुशोभित चारित्रमय जीवन ।
महर्षि गौतम चारित्रमय जीवन को तभी उत्कृष्ट, उपादेय और यशस्वी मानते हैं, जब उसके साथ सम्यग्ज्ञान और सम्यग्ध्यान हो। वरना कोरा चारित्रमय जीवन उतना अच्छा और कर्मों से मुक्त कराने वाला नहीं हो सकता। क्यों और कैसे ? इसका रहस्य मैं आपके समक्ष खोलने का प्रयत्न करूंगा। महर्षि गौतम ने गौतमकुलक में इकतालीसवाँ जीवनसूत्र संक्षेप में इस प्रकार बता दिया है
'नाणं सुझाणं चरणस्स सोहा ।' 'चारित्र की शोभा ज्ञान और सुध्यान है।'
चारित्र और उसका महत्त्व चारित्र मानव-जीवन के निर्माण एवं मोक्ष-प्राप्ति के लिए बहुत ही आवश्यक है। इसके बिना कोरा ज्ञान वन्ध्य है, वह कुछ भी नहीं कर सकता। इसीलिए इसे मोक्षमार्ग का प्रधान अंग माना गया है।
शुद्ध और व्यापक धर्म के अंगों-अहिंसा आदि के स्वरूप का अच्छी तरह ज्ञान होने और उन पर विश्वास कर लेने मात्र से ही काम नहीं चलता । समाज और जगत् की दृष्टि में कोई भी व्यक्ति तब तक धार्मिक, धर्मात्मा और विश्वासपात्र नहीं कहला सकता, जब तक उसके जीवन में धर्म के तत्त्वों का सम्यक् प्रकार से आचरणसम्यक्चारित्र का पालन न हो। स्पष्ट शब्दों में यों कहा जा सकता है कि सम्यक्चारित्र शुद्ध धर्म (अहिंसादि) को समाज और जगत् के समक्ष व्यक्तरूप में प्रकट करने, धर्माचरण के प्रति लोकश्रद्धा जमाने और धर्मपालन में आने वाली कठिनाइयों
और समस्याओं को हल करते हुए व्यवहार में सुदृढ़तापूर्वक धर्म को आचरित करके बताने हेतु अनिवार्य है।
सम्यक्चारित्र के बिना धर्म की शक्ति की प्रतीति जनता को नहीं होती। उसके बिना धर्म जनजीवन में और स्वजीवन में उतरता नहीं। इसलिए सम्यक्
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