________________
चारित्र की शोभा : ज्ञान और सुध्यान-१
२३५
मुनि खड़े हैं। इन्हें न मृत्यु का भय है, न जीने का मोह है। योग आज सफल होता दिखता है इन्हें । वे अपने इष्टदेव के रटन में तल्लीन हैं। अन्तर् से नाद गूंज रहा है
"चत्तारि सरणं पवज्जामि........" पहाड़-सा हाथी चिंघाड़ रहा था। राजाज्ञा होने की देर थी, पलभर में योगी की मनोहर काया को चूर-चूर कर देता। योगी को चट्टान की तरह अडिग देख बादशाह ने सोचा-मेरी धमकी का अस्त्र व्यर्थ गया। मन में इन्सानियत जागी, जिसने मित्रसम योगी की हत्या से उसे उबार लिया । सम्राट ने उच्च स्वर से कहा"हाथी को वापस ले जाओ। और सुन लो, योगिराज ! हमारे राज्य से आपको देशनिकाला दिया जाता है, साथ ही आपके गुरु के सिवाय आपके धर्म के सभी साधुमुमुक्षुओं को भी देशनिकाला दिया जाता है।"
मुनि सिद्धिचन्द्र जो चारित्र-साधना की परीक्षा में उत्तीर्ण होने का सन्तोष अनुभव कर रहे थे, बोले- "मंजूर है।" और उन्होंने बादशाह जहाँगीर का राज्य छोड़कर मालपुर चौमासा किया। गृहत्यागी के लिए तो सारा संसार ही घर है । फिर चिन्ता किस बात की, सिर्फ एक ही खटक थी, जीवननिर्माता गुरु के वियोग की। गुरु भानुचन्द्रजी भी उत्तम साधक थे, निर्दोष शिष्य को स्वजनसम सम्राट् द्वारा दण्ड दिये जाने से वियोग का असह्य दुःख तो उन्हें भी था, पर वे संयम के ढक्कन से उसे ढके हुए थे । जहाँगीर को नियमित धर्मोपदेश सुनाते रहे। बादशाह को अपनी गलती पर पश्चात्ताप हुआ। एक दिन उन्होंने स्वतःस्फुरणा से मुनि सिद्धिचन्द्रजी को स-सम्मान अपने राज्य में पत्र देकर बुला लाने के लिए सेवक भेजे । गुरु-शिष्य पुनः मिले । राजा और योगी भी पुनः एक दूसरे के धर्म-मित्र बन गये ।
बन्धुओ ! सिद्धिचन्द्र मुनि का चारित्ररूपी पौधा अगर ज्ञानरूपी जल से न सींचा जाता और ध्यानरूपी खाद से संवधित एवं पुष्ट न किया जाता तो वह उनके संस्कारों में बद्धमूल एवं सुदृढ़ न होता, और वे बादशाह के द्वारा ली गई चारित्र की अग्निपरीक्षा में कभी न टिक सकते थे, वे शीघ्र ही चारित्र से भ्रष्ट हो जाते, वर्षों से पालित-पोषित चारित्र को छोड़कर भोगमार्ग को अपना लेते ।
___ यह उनके ज्ञान और सुध्यान का ही प्रभाव था कि आग में डाले जाने पर भी उनका चारित्र भस्म न हुआ, बल्कि कुन्दन की तरह चमक उठा। मोक्षफल पाने के लिए चारित्र के साथ ज्ञान और सुध्यान
का सहयोग आवश्यक मोक्षफल प्राप्त करने के लिए चारित्र के साथ ज्ञान और सुध्यान दोनों आवश्यक हैं। शास्त्र में अन्धे और पंगु का एक उदाहरण आता है—राजा ने बगीचे की रखवाली के एक अन्धे और एक पंगु को रख दिया था। और उन्हें कह दिया था;
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org