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आनन्द प्रवचन : माग १०
. स्वामी रामतीर्थ के जीवन की एक घटना है। लाहौर छोड़ने के पश्चात वे एक दिन मस्ती की दशा में हृषीकेश से आगे गंगा के किनारे घूम रहे थे। उस समय एक योगी उन्हें मिला। स्वामीजी ने उससे पूछा- "बाबा ! आप कितने वर्ष से
संन्यासी हैं ?"
योगी ने कहा-"कोई चालीस वर्ष हो गये।" स्वामी रामतीर्थ ने पूछा- "इतने वर्षों में आपने क्या कुछ प्राप्त किया ?"
योगी ने बड़े गर्व से कहा- "इस गंगा को देखते हो? मैं चाहूँ तो इसके पानी पर उसी प्रकार चलकर दूसरे पार जा सकता हूँ, जिस प्रकार कोई शुष्क भूमि पर चलता है।"
स्वामी राम ने कहा- "उस पार से वापस भी आ सकते हैं, आप ?" योगी बोला-"हाँ, वापस भी आ सकता हूँ।" स्वामी राम-"इसके अतिरिक्त कुछ और ?" योगी ने कहा--"यह सिद्धि भी कोई कम है ?"
स्वामी राम ने मुस्कराते हुए कहा-"यह तो बहुत छोटी-सी बात है, बाबा ! चालीस वर्ष आपने इसके पाने में खो दिये। नदी पर नौका भी चलती है। दो आने इधर से उस पार जाने के और दो आने उस पार से इस पार आने के लगते हैं । चालीस वर्ष में आपने वह प्राप्त किया, जो किसी को चार आने खर्च करके प्राप्त हो सकता है । आप अमृत सिन्धु समान चारित्र (धर्माचरण) में गये अवश्य, लेकिन मुक्ताफल लाने के बदले लाये कंकर ही बटोर कर ।" ज्ञान और सुध्यान के अभाव में चारित्र की दशा - ज्ञान और सुध्यान के बिना चारित्र के नाम पर भौतिक उपलब्धियों की आकांक्षा से कुछ कामनामूलक क्रियाएँ करने वालों को यह बोलती हुई कहानी है। अगर उस योगी में अपने संन्यासी जीवन के धर्माचरण (चारित्र) के साथ सम्यग्ज्ञान और सुध्यान होता तो वह भौतिक सिद्धियों के चक्कर में न पड़कर मोक्षाभिमुखी साधना करता । किन्तु अज्ञान और कुध्यान चारित्र की निर्मल (कामनारहित) साधना से हटाकर भौतिक चमत्कारों के लिए किये गये क्रियाकाण्डों की ओर ही प्रेरित करते हैं। सम्यग्ज्ञान और सुध्यान का अभाव चारित्र को सुशोभित करने के बदले दूषित कर देता है।
जिन साधकों के जीवन में ज्ञान और सुध्यान नहीं होता, वे प्रायः दूसरों का अन्धानुकरण करके बिना सोचे-समझे अमुक वेश, अमुक क्रियाओं, तथा अमुक व्यवहारों को ही शुद्ध चारित्र मानकर चलते हैं, वे तब तक अपने इस पूर्वाग्रह को नहीं छोड़ते, जब तक वे किसी उलझन में नहीं पड़ते और कोई सम्यग्ज्ञान-ध्यानपूर्वक सच्चारित्र का पालक अनुभवी साधक उन्हें सच्चा मार्ग बताकर उनकी उलझन को सुलझा नहीं देता । मुझे एक रोचक उदाहरण याद आ रहा है
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