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प्रशम की शोभा : समाधियोग- १
धर्मप्रेमी बन्धुओ !
समक्ष चर्चा
आज मैं एक महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक जीवन के सम्बन्ध में आपके करूँगा | आध्यात्मिक जीवन से आप चौंकिए नहीं, इस जीवन को केवल साधुसाध्वियों की बपौती मत मानिये यह साधुवर्ग एवं गृहस्थवर्ग, सभी वर्गों के लिए सुरक्षित है । जैसा कि एक मनीषी ने कहा है
ब्रह्मचारी गृहस्थो वा वानप्रस्थो यतिस्तथा । सर्वे तेऽथ शमेनैव प्राप्नुवन्ति परां गतिम् ॥
ब्रह्मचारी हो, गृहस्थ हो, वानप्रस्थ हो या साधु हो, ये सभी शम से ही परमगति पाते हैं ।
जो भी इस जीवन को अपनाना चाहे, उसके लिए इस जीवन की साधना अपना राजमार्ग बनाये हुए है । वह जीवन है— प्रशान्त या प्रशमयुक्त जीवन ।
महर्षि गौतम से जब किसी ने पूछा - प्रशमयुक्त जीवन की शोभा किसमें है ? तब उन्होंने अपनी अनुभवी वाणी से उत्तर दिया – समाधियोग में । गौतमकुलक का यह चालीसवाँ जीवनसूत्र इस प्रकार है'समा हिजोगो पसमस्त सोहा'
प्रशम की शोभा है - समाधियोग |
प्रशम की उपयोगिता और महत्ता
प्रशम मानव-जीवन का अमृत है । क्रोधादि कषायों के दावानल से जलते हुए मानव समूह को प्रशम की अमृतधारा शान्त कर देती है । मानव जाति के पारस्परिक वैषम्य, मनोमालिन्य, दुःख- दैन्य, सहयोगाभाव, कषाय- कालुष्य, अहंकारविष, रोष, द्वेष, दुर्भाव और वैर-विरोध को प्रशम ही मिटा सकता है ।
आपको अनुभव होगा कि भीष्म ग्रीष्म ऋतु में जब दिन में सूर्य आग उगलता है, तो धरती तवे की तरह तप जाती है, मनुष्यों के कपड़े, शरीर और अंगोपांग गर्म हो जाते हैं, पसीने से तरबतर हो जाते हैं, ऐसे दिनों में रातें बड़ी सुहावनी और लगती हैं । मनुष्य तारों से भरा आकाश देखता है तो उसके चित्त में
सुखद
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