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१८६ आनन्द प्रवचन : भाग १०
_ 'सदैव वासनाओं का त्याग ही शम कहा गया है। वृत्तियों को शान्त रखना भी शम है।'
इस प्रकार सभी लक्षणों का सारांश है-"आत्मभाव में निष्ठापूर्वक रमण करते हुए विषय-कषायादि वृत्तियों का उपशान्त रहना शम है।"
यह एक माना हुआ तथ्य है कि जब साधक आत्म-भावों में रमण करता है, उन्हीं में तल्लीन हो जाता है तब विषय-कषायादि का प्रादुर्भाव नहीं होता, बाहर से विषय-कषायों का निमित्त मिलने पर भी उसके मन में जागत नहीं होता । जैसे प्रकाश होते ही कितना ही घना अन्धकार हो, भाग जाता है, वैसे ही आत्मस्वरूप का प्रकाश परिपक्व हो जाने पर विषय-कषायादि रूप अन्धकार भाग जाता है, टिक नहीं पाता।
___ श्मशान में जो शान्ति होती है, उसे प्रशम नहीं कहा जाता। श्मशान की शान्ति का कोई अर्थ नहीं है। मृतक की शान्ति को भी प्रशम कदापि नहीं कहा जा सकता और न ही उस शान्ति का कोई उपयोग है । प्रशम समान में, मनुष्य के हृदय में तथा मन-मस्तिष्क में हो, तभी उसका मूल्य है । वह निर्भर है-लोगों के पारस्परिक सम्बन्ध और पारस्परिक व्यवहार पर । अतः ऐसे समय में ही जो प्रशम होता है, वही प्रशम मानव-जाति के लिए उपयोगी और मूल्यवान है।
____संसार में अधिकांश लोग शान्ति चाहते हैं, वे सदा से शान्ति के पक्ष में हैं, अशान्ति नहीं चाहते । अशान्ति पैदा करने वाले थोड़े-से लोग होते हैं, जो प्रायः सत्ताधीश होते हैं, उनकी भावनाएँ विस्तारवादी होती हैं । वे दुनिया में मार काट मचाकर शान्ति स्थापित करना चाहते हैं । अमेरिका, रूस आदि कुछ महाशक्तियों के हाथ में हाईड्रोजन बम, अणुबम या नाइट्रोजन बम हैं । इन बमों की शक्ति का स्वामित्व भी कुछेक लोगों के हाथ में है, जिन्हें निःशस्त्रीकरण या युद्धरहित शान्ति की बात नहीं सुहाती । वियतनाम में युद्ध के प्रयोग को भी शान्ति के लिए किया बताया गया है । शक्ति सन्तुलन के बिना शान्ति नहीं हो सकती, ऐसा उन महाशक्तियों का दृढ़ विश्वास हो गया है। किन्तु युद्ध के द्वारा, अणुबम आदि फेंककर की जाने वाली शक्ति तो अशान्ति का बीज है । वह कदापि प्रशम नहीं हो सकता। प्रशम के लिए मानसिक, वाचिक, कायिक शान्ति अपेक्षित है, जो मन-वचन-काया के सन्तुलन से हो सकती है।
जो प्रशम के साधक होते हैं, वे मानसिक-वाचिक-कायिक शान्ति स्वयं के जीवन में चाहते हैं और विश्व-राष्ट्रों के जीवन में भी। वे अणु अस्त्रों तथा युद्धों द्वारा होने वाली कृत्रिम एवं क्षणिक शान्ति का विरोध करते हैं।
मास्को में जिस दिन रूस, अमेरिका और ब्रिटेन ने एटमी विस्फोट समाप्त करने की सन्धि पर हस्ताक्षर किये थे, उस दिन सारे संसार ने सन्तोष और शान्ति की साँस ली थी। यह समझौता एक महान् प्रशम साधक शान्ति के पुजारी के भगीरथ प्रयत्नों से सम्पन्न हुआ। उस शान्ति के पुजारी का नाम था डॉ. लाइनस
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