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प्रशम की शोभा : समाधियोग-२ १९७ प्रकार प्रशम-प्राप्ति के कार्य की या कार्यक्रम की सफलता और सत्यता का पता भी लक्ष्यबिन्दु से चल जाएगा। भले ही प्रशम-प्राप्ति का साधक अभी दो ही कदम चला हो, लेकिन प्रशम-प्राप्ति के लक्ष्यबिन्दु को अटल निष्ठा के साथ धारण करके और प्रशम-प्राप्ति में बाधक तत्त्वों को दृढ़ता से छोड़कर चला है तो वह शीघ्र ही प्रशम के निकट पहुँच सकेगा। सच्चे लक्ष्यबिन्दु की पहचान यह है कि जो अंतरंग से रुचि एवं श्रद्धापूर्वक उसी दिशा में चलने के लिए व्यक्ति को प्रेरित करे, अन्य दिशा में चलने से रोके।
एक दृष्टान्त द्वारा मैं अपने विषय को स्पष्ट कर देता हूँ
एक सेठ थे। वे अपने आपको भगवान का बड़ा भक्त मानते थे। धर्मस्थान में जाकर घण्टों भगवान की स्तुति करते, अपने पाप-दोषों के लिए समुच्चय रूप से दीन बनकर प्रार्थना भी करते और कई घण्टे माला लेकर जप भी करते थे। उनकी पुकार यही थी- "भगवन् ! किसी भी प्रकार से मुझे आप मिल जाएँ।"
एक दिन उनकी प्रभु-भक्ति की परीक्षा का मौका आया। एक देव आकर बोला-'आपकी भक्ति से भगवान अत्यन्त प्रसन्न हुए हैं, और मुझे आपकी इच्छापूर्ति के लिए भेजा है।" सुनते ही सेठजी की प्रसन्नता का पार न रहा, क्योंकि उनकी प्रार्थना के अनुसार आज उन्हें परमात्मा की प्राप्ति होने वाली थी, वीतराग प्रभु उन्हें आज मिलने वाले थे। लेकिन देव ने कहा- "आपकी मनोवांछित प्राप्ति के पूर्व आपके जो दस पुत्र हैं, उनमें से प्रतिदिन एक पुत्र मरता जाएगा, तथा आपके जो दस कारखाने हैं, उनमें से प्रतिदिन एक कारखाना फेल होता जाएगा । इस प्रकार दस दिन में आपके दसों पुत्र मर जाएंगे और आपके दसों कारखाने फेल हो जाएंगे, और तब ग्यारहवें दिन मैं आपको प्रभु से मिलाने ले जाऊंगा।"
यह बात सुनते ही सेठ के होश गुम हो गये। उनकी आँखों में अँधेरा छा गया । पुत्रों की मृत्यु तो कदाचित् सह ली जाती, परन्तु कारखानों का फेल होना, बिलकुल कंगाल होकर रहना, यह तो असह्य होगा। यह तो बिलकुल गले नहीं उतरता। सेठ ने प्रभु के इस सन्देशवाहक देव से कहा- "भैया ! आपने मेरे लिए बड़ा कष्ट किया है, लेकिन एक कष्ट और करें, उसके लिए क्षमा चाहता हूँ, वह यह कि प्रभु से जाकर मेरी ओर से नमस्कार करके प्रार्थना करना कि भगवत्प्राप्ति किसी और क्वालिटी की हो, जिसमें इतना कठोर त्याग न करना पड़े तो मुझे वह प्रदान करने की कृपा करें, मगर इस क्वालिटी की प्रभु-प्राप्ति मेरे लिए असह्य और दुष्पाच्य होगी।"
क्या वीतरागता या वीतराग प्रभु की प्राप्ति सेठजी को इतना उत्कृष्ट त्याग या मोहत्याग किये बिना ही हो जाती ? यह कदापि सम्भव न था, परन्तु सेठ तो सस्ती वीतराग प्रभु-प्राप्ति चाहते थे, जिसमें "हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखो हो जाय।" क्या आप भी ऐसी ही सस्ती प्रशम-प्राप्ति चाहते हैं, जिसके साथ धन, परि
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