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सुसाधु होते तत्त्वपरायण–२ १२५ एक सज्जन थे । वे चुनाव में दो बार हार गये थे। फिर भी अपने इष्ट मित्रों के सामने रोना रोते हुए कह रहे थे-क्या करें साहब ! राजनीति का नशा ऐसा है, जो छुड़ाए छूटता ही नहीं।
भला बताइए, जिसकी बुद्धि में तत्त्वज्ञान भरा है, जागरूक चेतना है, विवेकयुक्त स्वस्थ सन्तुलित मनोभूमि है, भला वह ऐसे अनिष्ट में फंस ही कैसे सकता है ? या फँसा कैसे रह सकता है ? साँप को निकट आते देख लेने पर क्या विवेकी मनुष्य उससे दूर हटे बिना कैसे रह सकता है ?
तत्वज्ञानी अन्धविश्वास में भी नहीं फंसता तत्त्वज्ञानी प्रत्येक वस्तु, घटना, वचन एवं कार्य-प्रवृत्ति पर तात्त्विक दृष्टि से गहराई से विचार करता है । उसकी तत्त्वनिष्ठा उसे धोखा नहीं दे सकती। वहाँ अन्धविश्वास में फंसने का तो कोई प्रश्न ही नहीं है । वह वस्तु तत्त्व का विचार करके हेय को हेय समझता है, उपादेय को उपादेय और ज्ञेय को और ज्ञय।
जर्मन निवासी तत्त्वज्ञानी मार्टिन लूथर एक अन्धविश्वासोच्छेदक था। वह धर्म के मामले में रोम में प्रचलित पोपलीला को धर्म के लिए कलंक मानता था। वह अन्धविश्वास के खिलाफ लोगों को समझाता तथा उसकी हानियां भी बताता। इससे तत्त्वशून्य कट्टर पादरी भड़क उठे और उसे मारने को दौड़े। एक पादरी ने उससे कहा-देखो ! यह जो सोपान दृष्टिगोचर हो रहा है, उस पर चढ़कर ईसामसीह स्वर्ग सिधारे थे । इस पाइलट स्टेअर का यह प्रभाव है कि पोप जिसको इस पर चढ़ा देते हैं, उसके समस्त पाप दूर हो जाते हैं, वह अवश्य ही स्वर्ग चला जाता है। मगर मार्टिन लूथर को यह सब पादरियों का ढोंग लगा।
मार्टिन स्वयं सच्चा पादरी (धर्माचार्य) बनकर लोगों को सद्विचार देने लगा। रोम में प्रचलित अन्धविश्वास और धर्म में प्रविष्ट विकारों को दूर करने का उसने बीड़ा उठाया । उस अन्धकार युग में अन्धविश्वासों का खण्डन करना अत्यन्त साहस का काम था । लूथर ने अपनी तत्त्वनिष्ठा का परिचय देते हुए सबसे बड़ी बात यह कही कि-'मनुष्य अपने सत्कर्मों द्वारा स्वयं मुक्ति प्राप्त कर सकता है।' अतः अन्धपरम्पराओं को न मानो । उद्धार का मार्ग है-'पाप कर्मों से स्वयं बचना तथा अब तक जो ऐसे कृत्य बन गये हों, उनके लिए प्रभु से क्षमा माँगना।' परलोक में स्वर्ग मिल जाने के नाम पर लोगों से लाखों रुपये बटोरकर पोप उक्त व्यक्ति को हण्डी लिख देता था । इसका मार्टिन लूथर ने विरोध किया, जिसका स्वीकार वहाँ के तत्त्वप्रेमी लोगों ने किया। इस प्रकार मार्टिन लूथर ने आजीवन पादरी रहकर धार्मिक अन्धविश्वासों से लोगों को बचाया।
वास्तव में तत्त्वनिष्ठ साधु की वाणी में वह बल होता है कि लोग अन्धविश्वासों में नहीं फंसते ।
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