________________
६२ आनन्द प्रवचन : भाग १०
गायन ने बात की बात में छोड़ दी । वह तुरन्त आपरेशन रूम में प्रविष्ट हुआ और महामारी से मरे हुए मनुष्य की लाश को चीरने लगा। भयंकर बदबू से नाक फटी जा रही थी । फिर भी वह लाश को चीरता गया, और निदान करता गया । रोग के जन्तुओं के आक्रमण के स्थान, उनके कारणों और उनकी स्थायी चिकित्सा के सम्बन्ध में उसने एक नोंध तैयार की। यह नोंध उसने रासायनिक द्रव्यों में रखी, जिससे छूने वाले को रोग का चेप न लगे ।
हेनरी गायन ने अपना काम पूरा किया; पर उसका शरीर तो बुखार से कभी का तप गया था । प्लेग के जन्तु इसके शरीर में अपना घरौंदा बना चुके थे । वह खड़ा होने लगा, पर सहसा गिर पड़ा और वहीं उसके प्राण पखेरू उड़ गये । परन्तु उसके मुख पर अपनी शोध पूर्ण करने का सन्तोष था । वास्तव में हेनरी गायन महामारी के निदान की विद्या और उसकी स्थायी चिकित्सा के विषय में अन्वेषण करने वाला महान परोपकारी विद्याधर था, जिसने अपना प्राणोत्सर्ग करके लाखों मानवों को जीवन दान दिया ।
इसी प्रकार लुई पाश्चर, मैडम क्यूरी आदि कई को खतरे में डालकर भी शोध एवं प्रयोग करने वाले विद्याधरों में परिगणित किया जा सकता है ।
प्राचीन विद्याधर, जो विद्याधरकुल के न थे
वैदिक धर्मग्रन्थों में विद्या के दो प्रकार बताये हैं- पराविद्या और अपराविद्या । जिससे अक्षर परमात्मा का ज्ञान हो, वह पराविद्या है और ऋग्वेद, सामवेद, अथर्ववेद और " यजुर्वेद, शिक्षा (वर्णों के शुद्ध उच्चारण तथा लेखन विद्या), कल्प ( धार्मिक आचार-विचारों की विद्या), व्याकरण, निरुक्त ( शब्दों का विश्लेषण करने वाली विद्या), छन्द, ज्योतिष, आयुर्वेद, इतिहास-पुराण, मीमांसा न्याय और धर्मशास्त्र; ये १४ विद्याएँ अपराविद्या हैं । इन विद्याओं के अन्वेषण में रत, इन विद्याओं के सूत्र, मन्त्र या नुस्खे देने वाले, तथा इनका प्रयोग व आचरण करने-कराने वाले महानुभाव भी प्राचीन विद्याधर की कोटि में माने जा सकते हैं, भले ही वे वंशपरम्परा से विद्याधरकुल के न थे, परन्तु उनकी लोकोपकारिता में कोई सन्देह नहीं किया जा सकता ।
परोपकारार्थ अपने प्राणों महानुभावों को आधुनिक
मैं आयुर्वेद के अन्तर्गत रसायनविद्या को सिद्ध करने और उसके प्रयोग एवं सिद्धान्त (मन्त्र) के अन्वेषण में दत्तचित्त नागार्जुन का उदाहरण आपके समक्ष प्रस्तुत
करूँगा –
भारत के प्राचीन रसवैद्यों ने पारद और उसके विभिन्न आश्चर्यजनक प्रयोगों के बारे में बड़ी खोजबीन की थी। जिस प्रकार आज के वैज्ञानिकों ने 'यूरेनियम' धातु के प्रयोग से अणुशक्ति को प्राप्त कर लिया है, उससे कई रोगों का शर्तिया इलाज भी करना सीख लिया है, मनुष्य को अजर-अमर बना देने का भी कीमिया जान
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org