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आनन्द प्रवचन : भाग १०
प्रातः राजा ने महाकवि भारवि को बुलवाया। इस श्लोक पर सवा लाख मोहरें इनाम दीं और चाँदी के पत्र पर स्वर्णाक्षरों में श्लोक को मँढ़ाकर अपने प्रत्येक कक्ष में टँगवा दिया ।
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अगर राजा बिना विचारे कुछ कर बैठता तो क्या हाल होता ? कितना - अनर्थ हो जाता ? इसलिए 'विद्याधर होते मन्त्र परायण' – इस पद का यह अर्थ भी बहुत गम्भीर और उपयोगी है कि विद्वान को सदा विचारशील, मननशील होना चाहिए, अथवा जो विचार- परायण होते हैं, वे ही विद्वान या विद्यासम्पन्न कहलाते हैं ।
जीवन में विद्या, ज्ञान या शिक्षा का उपयोग तभी है जब मनुष्य में विचारशीलता, मननशीलता आये, गम्भीरता आये । यही इस जीवनसूत्र का हार्द है ।
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