________________
मूर्ख नर होते कोपपरायण ७५ इस घटना को सुनकर आप उन महामूों पर हँसेंगे, और उन डाक्टरों को भी नीच, स्वार्थी और मूों के सरदार कहेंगे । पर यह सच्ची घटना है। गन्दगी से रोग बढ़ने लगे, तब म्युनिसपलिटी के युवक मेम्बरों ने कुछ समझदार लोगों को समझा-बुझाकर तैयार किया। सफाई में जुट गये। गन्दगी के ढेर साफ करने के बाद जब बीमारियाँ घटने लगी, तब जनता-जो अब तक मूर्खता की शिकार थी, प्रत्यक्ष प्रमाण देखकर सफाई के लिए सहमत हो गई। कुछ बूढ़े मूढ़ अब भी चिल्ला रहे थे-“सफाई तो कर रहे हो, पर देवता कुपित हो गए तो नगर का सर्वनाश हो जाएगा।" आज तो यूरोप में उस कुरूढ़ि का मूल से उच्छेद हो गया।
हाँ, तो मैं कह रहा था कि मूर्ख के द्वारा क्रोध, विरोध, द्वष और दुर्वचन होने का एक कारण है-अन्धविश्वास की पुरानी पर्ते उखाड़ना । जब मूर्ख यह देखता है कि पुरानी रूढ़ि या रीति को उखाड़ा जा रहा है, तब उसके दिल-दिमाग पर चोट पड़ती है, वह सोचता है, मानो सर्वस्व छीना जा रहा है । यही तो नासमझी है, अदूरदर्शिता है, मूढ़ता है, जिसे मूर्ख अपनाता है।
मुर्ख को जरा-सी हितकर बात कह दो, वह यह समझने लगता है कि मेरा अपमान किया जा रहा है, मेरे (मिथ्या) अभिमान पर चोट लगाई जा रही है, इसलिए वह एकदम चिढ़ जाता है और प्रतिकार करने लगता है। प्रतिकार के समय वह अन्धा हो जाता है और उस उपदेश को नहीं सुनता।
__ अभिमान में भरी एक लारी ने बैलगाड़ी से कहा-पों पों ऐ ! हटो आगे से कच्चे में चलो। यह तारकोल की काली सड़क तुम्हारे लिए नहीं है ।" बैलगाड़ी ने नम्रता से कहा- "बहन ! रास्ता बहुत चौड़ा पड़ा है, तुम ही बचकर एक तरफ से निकल जाओ न !” इस पर लारी का क्रोध भड़क उठा। उसने तमककर कहा"जवाब देती है, बदतमीज ! हट आगे से मुर्दे बैल वाली ।" बैलगाड़ी ने व्यंग की मुद्रा में कहा---''हाँ, बड़ी रूपसी हो तुम तो! पर बहन क्या किया जाए, तुम तो जड़ लोहा ही हो, और मेरे मुर्दा बैलों में भी धड़कता जीवन है।" लारी के अभिमान को गहरी ठेस लगी, क्रुद्ध सर्पिणी की भाँति वह फुकार उठी- "पों, पों, हटो, नहीं तो टक्कर मारती हूँ।"
बैलगाड़ी ने तब भी प्यार से कहा-"लो बहन ! तुम दुःखी न हो, मैं ही कच्ची सड़क पर चल देती हूँ। तुम खुशी से ही पक्की सड़क पर चलो। पर बड़ी बहन के नाते तुम मेरी एक बात तो मान लो कि तुम परदेशी हो और आजकल मेरे देश की मेहमान हो । मेहमान के लिए यह उचित नहीं कि वह मेजवान के घर पर कब्जा कर ले और उसे डाँटे।" निर्लज्जता से लारी ने कहा-"तुम्हारी जाति ही मूर्ख है जो इसे अनुचित समझो। हमारी जाति में तो यह नीतिपूर्ण वीरता ही समझी जाती है।" बैलगाड़ी पर धूल उड़ाती लारी सरसराती हुई आगे चली गई । इसी समय बैलगाड़ी की घण्टी टनटना उठी । यह शायद उसके हृदय का नि:श्वास था ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org