________________
८६
आनन्द प्रवचन : भाग १०
पाश्चात्य विचारक जिम्मरमेन (Zimmerman) कहता है
Fools with bookish knowledge, are children with edged weapons, they hurt themselves and put others in pain.
__ "केवल किताबी ज्ञान वाले मूर्ख तो तेज धार वाले हथियार लिये हुए बच्चे हैं, जो स्वयं को तो नुकसान पहुंचाते ही हैं, दूसरों को भी मुसीबत में डाल देते हैं।" इसीलिए एक अनुभवी कहता है
शतं दद्यान्न विवदेति विज्ञस्य सम्मतम् ।
बिना हेतुमपि द्वन्द्वमेतन्मूर्खस्य लक्षणम् ॥ "विज्ञ मनुष्य की यह सम्मति है कि सौ रुपये देने पर भी मूर्ख के साथ विवाद या छेड़छाड़ नहीं करना चाहिए, क्योंकि मूर्ख की आदत है, वह बिना ही कारण लड़ाई ठान लेता है।"
यद्यपि क्रोधावेश में आकर किसी नम्र सज्जन से लड़ पड़ने में मूर्ख की हानि अधिक है, पर वह अपने हानि-लाभ पर विचार करे तब न ?
एक रूपक याद आ रहा है
एक बार आग और पानी में विवाद खड़ा हो गया। आग ने पानी से कहा"मूर्ख पानी ! चल, मेरे पास से दूर हट जा। जानता नहीं, मेरी ज्वाला के समक्ष संसार में कोई नहीं टिक सकता। मैं अपनी शक्ति से सारे संसार को जलाकर खाक कर सकती हूँ।"
पानी मुस्कराया। उसने हँसकर उत्तर दिया-"बहन ! सच ही तो कहती हो, तुम्हारी शक्ति की कोई समता नहीं कर सकता; पर बुरा न मानो तो एक बार मेरी शीतलता का स्पर्श तो कर देखो !"
आग झपटी कि जल को जला डालूं, पर हुआ यह कि वह स्वयं ही बुझ गई।
हाँ तो, मूर्ख मानव की क्रोध की आग सज्जन मनुष्य की शीतलता का स्पर्श करते ही स्वयं बुझ जायगी, वह अपने ही अस्तित्व को खो बैठेगी।
पर मूर्ख मनुष्य मानते कब हैं ? वे क्रोध की आग लेकर हर एक पर झपटते हैं; फिर भले ही उन्हें मुंह की खानी पड़ जाए।
एक बेवकूफ यात्री अभिमान में अकड़ कर अंधाधुन्ध जा रहा था। रास्ते में बाड़ का ध्यान न रखने से उसके पैर में बाड़ का एक काँटा चुभ गया। चुभते ही उसे बहुत दुःख हुआ। उसे काँटे की बाड़ पर इतना गुस्सा चढ़ा कि एक के बाद एक १०-१५ लातें उस पर जमा दीं। मगर ऐसा करने से परिणाम क्या आयेगा, यह उस मूर्ख यात्री ने सोचा नहीं था। यही हुआ कि एक काँटे के बदले उसके पैर में कई काँटे चुभ गये, अधिक पीड़ा हुई । कारण यह है कि बाड़ के लात मारने से बाड़ तो कोई खिसकती नहीं, उसका कुछ भी नहीं बिगड़ता, नुकसान होता है लात मारने वाले का ही।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org