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११४ आनन्द प्रवचन : भाग १०
हाँ तो मैं कह रहा था कि तत्त्ववेत्ता स्वयं भी विषयादि प्रलोभनों से डिगता नहीं और दूसरों को भी अपनी तत्त्वनिष्ठा से प्रभावित करके मूल एवं स्वाभाविक धर्म पर स्थिर कर देता है, उनमें आत्मनिष्ठा जगा देता है ।
स्थूलभद्र मुनि की कथा को तो काफी अर्सा हो गया, वर्तमान युग के तत्त्वपरायण स्वामी विवेकानन्द के जीवन की एक घटना सुनिए
खेतड़ी के राजा अजितसिंह स्वामी विवेकानन्द को अपना गुरु मानते थे । एक बार राजा और दरबारी लोग एक वाटिका में बैठे थे । राजा साहब को कुछ उदासी और सुस्ती प्रतीत हुई। उन्होंने संगीत - निपुण एक वृद्धा गायिका को गायन सुनाने का आदेश दिया । स्वामी विवेकानन्द भी उन दिनों राजा साहब के यहाँ पधारे हुए थे । अतः उन्होंने स्वामीजी को भी गायन सुनने के लिए बुला भेजा । स्वामीजी ज्योंही पधारे गायिका ने गाना प्रारम्भ किया। प्रथम तो स्वामीजी संन्यासी के शिष्टाचार के अनुसार वहाँ झट उठकर चल दिये। लेकिन गायिका अपनी मस्ती में गाती रही - " प्रभु मेरे अवगुन चित न धरो", यह सूरदासजी का प्रसिद्ध भजन ।
और फिर पूजागृह के लोहे
कहते हैं, स्वामीजी ने बाहर जाकर जब गीत की सारी कड़ियाँ सुन लीं तो सहसा ठिठक गये और उसके तत्त्व पर विचार करने लगे- 'क्या तू तत्त्वज्ञानी और अद्वैतवाद का पुरस्कर्ता वेदान्ती संन्यासी होते हुए भी गायकों की आत्मा से घृणा करता है ? घृणा पाप से होती है, पापी से घृणा कैसी ? और वधिकगृह के लोहे में क्या पारस अन्तर करता है ? क्या गंगा नदी नाले का गन्दा पानी और छोटी पहाड़ी नदी का स्वच्छ पानी दोनों को अपने में एकभाव से नहीं समा लेती ? फिर तू समदर्शी और तत्त्वज्ञानी होते हुए भी इस माता के प्रति क्यों हृदय में भेदभाव को लिये हुए हैं ?
बस, स्वामीजी इस तत्त्वचिन्तन में इतने डूब गये कि उनकी आँखों से अश्रुधारा बह निकली ।
वे गीत के अन्त में फिर लौटे, वृद्धा गायिका को अपनी शिक्षिका, गुरुणी तथा माता माना । इस घटना के बाद उस वृद्धा गायिका ने अपना शेष समस्त जीवन प्रभुभक्ति के गीत गाने में सात्त्विकता से बिताया ।
यही कारण है कि तत्त्वज्ञाननिष्ठ साधक बंधन के प्रसंगों में भी सावधान होकर बन्धन से दूर रहते हैं । वे स्वतन्त्र विचार के धनी होते हैं ।
तत्त्वज्ञानशून्य व्यक्ति मुंह से तो कहता है— हमें बन्धन से मुक्त होना है, परन्तु वास्तव में देखा जाय तो वह बन्धन से मुक्त होना नहीं चाहता, बंधन में पड़े रहने में ही उसे आनन्द आता है ।
एक व्यक्ति ने एक तोते को पिंजरे में बन्द कर रखा था । एक सन्त ने उसके मालिक से पूछा - "भाई ! इस तोते को तुमने पिंजरे में क्यों बन्द कर रखा है ?"
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