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३४ आनन्द प्रवचन : भाग १०
"राजा धर्मात्मा होगा तो प्रजा भी धर्मपरायण होगी, और पापी होगा तो प्रजा भी पापिष्ठ होगी । राजा के समान ही प्रजा होगी। क्योंकि प्रजा राजा का अनुसरण करती है, जैसा राजा होता है, वैसी ही उसकी प्रजा होती है ।"
अतः शिष्ट राजा ऐसा कोई भी गलत कदम नहीं उठाता, न निकृष्ट, पापयुक्त, अधार्मिक व्यवहार करता है, जिससे प्रजा को उसके अनुसरण का मौका मिले । जो जनता के हृदय पर शासन करे, वही उत्कृष्ट राजा
वास्तव में उत्कृष्ट राजा वह है, जो जनता के हृदय पर शासन करे । ऐसे तो अपने मिथ्या पराक्रम से, छलबल से राज्य हस्तगत करके हर कोई राजा कहलाने लगता है, परन्तु अगर वह प्रजा को पीड़ित करता है, उसका शोषण करता है, सताता है तो वह प्रजा का हृदयसम्राट नहीं हो सकता । पाश्चात्य विचारक फोर्ड ( Ford ) इसी बात का समर्थन किया है
“Happy the kings, whose thrones are founded on their people's
hearts."
"वे भाग्यशाली राजा हैं, जिनके सिंहासन जनता के हृदय पर प्रतिष्ठित हैं ।" जिन राजाओं के जीवन में त्याग बलिदान की मात्रा अधिक होती है, वे ही राजा जनता के हृदय पर अपना सिंहासन (आसन) स्थापित करते हैं । जो जरा-जरा से स्वार्थ के लिए मरते हैं, प्रजा पर नाना प्रकार के कर लगाकर उसे चूसते हैं, वे जनता के 'हृदय में अपना आसन नहीं जमा सकते ।
प्राचीनकाल में कौशल का एक राजा था, जो अपने को जनता का सेवक मानता था, जनता के दुःख-दर्द के समय उसका हृदय चीत्कार उठता था । वह न्यायनीतिपूर्वक प्रजा का पालन करता था । एक बार उसकी वर्षगाँठ थी । कौशल की जनता ने तो उसकी वर्षगाँठ मनाई ही, अपने हृदय से हजारों आशीर्वादसूचक मंगलकामनाएँ भी की— “हमारे प्रजावत्सल राजा दीर्घायु और स्वस्थ्य हों; " परन्तु आसपास
जनपदों की, यहाँ तक कि काशी की जनता ने भी उनकी मंगल वर्षगाँठ मनाई ; क्योंकि वह इतने परोपकारी और दयालु थे कि कोई भी, किसी भी जनपद का निवासी भूखा, दुखी, दीन-हीन मानव उनके यहाँ पहुँच जाता, वह खाली नहीं लौटता था । उसे वह कुछ न कुछ सहायता देकर सन्तुष्ट करते थे । इसी कारण दूर-दूर तक की जनता के हृदय ' में कौशलनरेश के प्रति गहरा अनुराग था ।
परन्तु दुष्ट काशीनृप को कौशलनरेश के प्रति जनता का यह अनुराग और उनके प्रति प्रेम व्यक्त करने के लिए उनकी वर्षगाँठ मनाना फूटी आँखों नहीं सुहाया । ईर्ष्यावश उसने जनता को ऐसा करने से रोका, जब जनता नहीं रुकी तो अपना अपमान समझकर बड़ी भारी संख्या में सेना लेकर कौशल पर चढ़ाई कर दी ।
यद्यपि कौशल की सेना और जनता ने वीरतापूर्वक उसका सामना किया, किन्तु आखिर संख्या और शस्त्रास्त्र की कमी के कारण वह हार गई। कौशलनरेश को
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