________________
विद्याधर होते मन्त्रपरायण ५१ (३) बहुलीकरण -जो मन्त्र व्यापक क्षेत्र को प्रभावित कर सके, या अनेक व्यक्तियों के लिए प्रयुक्त किया जा सके, और
(४) आयात-यामता-साधक में श्रेष्ठ व्यक्तित्व की क्षमता हो।
इन सभी तथ्यों का समावेश होने से मन्त्र की प्रक्रिया से दैवीशक्ति का समावेश हो जाता है । साथ ही मन्त्राराधना का चामत्कारिक फल भी दृष्टिगोचर होता है। यद्यपि मन्त्र की श्रेष्ठता एवं गरिमा कम नहीं होती, किन्तु सामान्य व्यक्तित्व के मन्त्रसाधक यथेष्ठ प्रतिफल नहीं पा सकते।
इसके अतिरिक्त मन्त्र विनियोग के पाँच अंगों का भी ध्यान रखना जरूरी होता है
(१) ऋषि-(मार्गदर्शक गुरु), (२) छन्द-(स्वर, ताल, लय),
(३) देवता-(सूक्ष्म अव्यक्त जगत् में चलने वाले दिव्यशक्ति प्रवाहों में से अभीष्ट परत का चयन)
(४) बीज-(उद्गम-ह्रीं, क्लीं, श्री आदि बीजाक्षरों का विधान) और (५) तत्त्व-(लक्ष्य-मन्त्रानुष्ठान के प्रयोजन का निर्धारण)।
वैसे देखा जाय तो किसी भी मन्त्र में आपको कुछ अक्षरों का समूह ही मिलेगा। परन्तु केवल अक्षरों का अव्यवस्थित समूह मन्त्र नहीं बन जाता। अक्षरों का समूह इस तरीके से स्थापित किया जाय, जिसमें बीजमन्त्र का अक्षर भी हो, मन्त्र के देवता का भी नाम हो, और साथ में उस मन्त्र से जो अभीष्ट सिद्ध करना है, उसका संकल्प भी अंकित हो, तभी वह वास्तविक मन्त्र बनता है । 'दशरा मशरा' की तरह ऊटपटांग रूप से अक्षरों को बिठा देने से वह मन्त्र नहीं बन जाता। मन्त्र केवल नियत ध्वनियों का समूह ही नहीं है अपितु वह विज्ञान या विद्या है, जिसकी बार-बार आवृत्ति करने से शक्ति का उद्भव एवं जागरण होता है, मन्त्राधिष्ठायक दिव्यात्मा का आह्वान होता है, और वे दिव्यात्मा मन्त्रसिद्धि हो जाने पर मन्त्रसाधक मन्त्र से "जिस अभीष्ट को सिद्ध करना चाहता है, उसमें सहायक हो जाते हैं।
यही कारण है कि बीजमन्त्रों के आधार पर नमस्कार मन्त्रकल्प, लोगस्सकल्प, णमोत्थुणं विद्याकल्प, उवसग्गहरस्तोत्र, तिजयपहुत्तस्तोत्र, सन्तिकरस्तोत्र, भक्तामरस्तोत्र एवं कल्याणमन्दिरस्तोत्र तथा ऋषिमण्डलकल्प आदि का भी विविध उद्देश्यसाधक मन्त्रों के रूप में प्रयोग हुआ। जैन मनीषियों ने घण्टाकर्ण आदि और भी अनेक मन्त्र विविध अन्य धर्मीय साहित्य से अपनाये। लक्ष्मी आदि देवियों के मन्त्र भी रचित किये।
बौद्धों में वज्रयान से लेकर सहजयान, सिद्धयान काल तक मन्त्र-तन्त्रादि का बड़ा जोर रहा।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org