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दुष्टाधिप होते दण्डपरायण-२
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किसान बोला-"हाँ, खुशी से ! मेरे घर में थोड़ा-सा खाने को है, वह भी लो। तुम जरा देर से आये। मेरी पत्नी आज बीमार है, इसलिए मुझसे मेहमानदारी में कुछ कमी रहेगी। खैर, अन्दर चले आओ, बाहर क्यों खड़े हो ?"
किसान सम्राट को झोंपड़ी के अन्दर बनी एक कोठरी में ले गया, जहाँ उसके बच्चे सोये थे। एक कम्बल बिछाकर किसान ने सम्राट से कहा- "इस पर बैठो। मैं तुम्हारे खाने-पीने की व्यवस्था करता हूँ।" इतना कहकर वह अन्दर से रोटी और शहद थोड़ी देर में लेकर आया और बोला-''लो, मेरे बच्चों के साथ खाना खाओ, जितने में मैं अपनी रुग्ण पत्नी को सँभाल आता हूँ।" वह थोड़ी देर में एक छोटे से बच्चे को गोद में लेकर आया और कहने लगा-'कल इसका नामकरण होगा।" सम्राट ने प्रेम से उसे गोद में लिया और बोला-'यह बालक बड़ा भाग्यशाली होगा।" किसान हर्षित हुआ। दरिद्र किसान के पास एक ही बिछौना था, जिसे उसने सम्राट के लिए बिछा दिया, और स्वयं घास बिछाकर सो गया । सुबह आगन्तुक ने किसान से विदा लेते हुए कहा- "मैं मास्को पहँचकर अपने एक धनिक मित्र से बात करूँगा कि वह इस बालक का धर्मपिता बन जाये। तुम मुझे वचन दो कि मेरे वापस लौटने से पहले इस बालक का नामकरण नहीं करोगे। मैं तीन घंटे में आता हूँ।" किसान ने स्वीकार किया।
प्रतीक्षारत किसान ने देखा कि तीन घंटे बाद रूस का सम्राट अपने अंगरक्षकों के साथ उसकी झोंपड़ी के निकट घोडागाड़ी से उतरा और उससे कहा- "मैं अपने वचन का पालन करने के लिए ही आया हूँ, लाओ, मेरी गोद में इस बच्चे को दे दो, और तुम सब तैयार होकर चर्च में चलो।" किसान हक्का-बक्का हो गया, वह इस रहस्य को न समझ सका, तब सम्राट ने सारा रहस्य खोला। फिर कहा-"तुमने जो मेरे साथ मानवता का व्यवहार किया है, उसी का बदला चुकाने में आया हूँ।" किसान रहस्य समझ गया । तब से उस कृषकपुत्र का लालन-पालन रूस के सम्राट आईडॉन ने अपनी देख-रेख में किया और उस किसान परिवार को सुखी बना दिया।
यह है, राज्याधिप की जनता के दुख-दारिद्र य में सहानुभूति और सहृदयता की सक्रियता, जो उसे श्रेष्ठता के पद पर आसीन करती है।
जैसा राजा, वैसी प्रजा शिष्ट और सज्जन राजा इस बात को भली-भाँति जानता है कि मेरा आचरण, व्यवहार, चाल-चलन, रीति-नीति एवं रंग-ढंग अच्छा होगा तो प्रजा का भी अच्छा होगा। मैं अगर गलत और धर्मविरुद्ध आचरण एवं व्यवहार करूँगा तो प्रजा भी उसका अनुकरण करेगी । कहा भी है --
राज्ञि धर्मिणि धर्मिष्ठाः पापे पापाः समे समाः । राजानमेवानुवर्तन्ते, यथा राजा तथा प्रजाः ॥
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