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आनन्द प्रवचन : भाग १०
आदि क्षेत्रों में आज स्वार्थवाद का बोलबाला होने से शिष्टाधिपता का ह्रास होता जा रहा है । एक तरह से कहूँ तो, शिष्टाधिपों का दुष्काल सा हो गया है। क्या पारिवारिक, क्या सामाजिक और क्या धार्मिक सभी क्षेत्रों में संकीर्ण स्वार्थवाद घुस गया है, जिसके कारण उनके अधिपों (अग्रगण्यों या नेताओं) में पक्षपात, स्वार्थ, कलह, मनोमालिन्य, दूसरों पर दोषारोपण आदि दोष घुस गये हैं, जिसके कारण वे दूसरों को उत्पीड़न, शोषण, त्रास, भय, धमकी आदि रूप में दण्डित करते रहते हैं । यही उनकी दण्डपरायणता है; वे प्रेम से, आत्मीयता से, उनके हितैषी बनकर कार्य बहुत ही कम करते हैं अधिकतर अपने स्वार्थ और अधिकार को लेकर ही उनके काम होते हैं।
बन्धुओ ! मैं बहुत ही विस्तार से इस जीवनसूत्र पर विश्लेषण कर गया हूँ। आप सब इस पर मनन-चिन्तन करें और अपने-अपने क्षेत्र में से दुष्टाधिपता को निकालने और शिष्टाधिपता को स्थापित करने का प्रयत्न करें, तभी आप सुख-शांतिपूर्वक जीवनयापन कर सकेंगे।
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