SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४ आनन्द प्रवचन : भाग १० आदि क्षेत्रों में आज स्वार्थवाद का बोलबाला होने से शिष्टाधिपता का ह्रास होता जा रहा है । एक तरह से कहूँ तो, शिष्टाधिपों का दुष्काल सा हो गया है। क्या पारिवारिक, क्या सामाजिक और क्या धार्मिक सभी क्षेत्रों में संकीर्ण स्वार्थवाद घुस गया है, जिसके कारण उनके अधिपों (अग्रगण्यों या नेताओं) में पक्षपात, स्वार्थ, कलह, मनोमालिन्य, दूसरों पर दोषारोपण आदि दोष घुस गये हैं, जिसके कारण वे दूसरों को उत्पीड़न, शोषण, त्रास, भय, धमकी आदि रूप में दण्डित करते रहते हैं । यही उनकी दण्डपरायणता है; वे प्रेम से, आत्मीयता से, उनके हितैषी बनकर कार्य बहुत ही कम करते हैं अधिकतर अपने स्वार्थ और अधिकार को लेकर ही उनके काम होते हैं। बन्धुओ ! मैं बहुत ही विस्तार से इस जीवनसूत्र पर विश्लेषण कर गया हूँ। आप सब इस पर मनन-चिन्तन करें और अपने-अपने क्षेत्र में से दुष्टाधिपता को निकालने और शिष्टाधिपता को स्थापित करने का प्रयत्न करें, तभी आप सुख-शांतिपूर्वक जीवनयापन कर सकेंगे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004013
Book TitleAnand Pravachan Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1980
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy