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दुष्टाधिप होते दण्डपरायण - २
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भिक्षु बोला - "तेरे लिए यही दण्ड है कि आज से तू ईश्वर की नकल करना छोड़ दे । भयंकर दण्ड और नरक की रचना की कोई आवश्यकता नहीं । जो वास्तव में दण्डनीय हो, उसे ही मामूली दण्ड देकर सुधरने का मौका दे । देव न बन सके तो कम से कम मानव बनने का प्रयत्न कर, दानव तो कभी मत बन ।" इतना कहकर भिक्षु वहाँ से विदा हो गया ।'
बन्धुओ ! अत्यधिक एवं भयंकर दण्ड शिष्ट राज्याधिप को दुष्ट एवं राक्षस बना देता है ।
वास्तव में ही मनुष्य ज्यों-ज्यों दण्ड पाता है, त्यों-त्यों ढीठ व निर्भय होता जाता है । जैन सूत्रों में हकार, मकार, धिक्कार, बन्धन और छविच्छेद रूप जो दण्ड बताये हैं, उनसे यह पता चलता है कि मनुष्य के लिए ज्यों-ज्यों कठोर दण्ड बढ़ता गया, त्यों-त्यों वह अपराधी मनोवृत्ति का बनता गया और दण्ड से भी निर्भय होता
चला गया ।
कन्फ्यूशियस के वचनानुसार - अत्याचारी शासक बाघ और चीते से भी भयंकर होता है । क्योंकि उसमें अमानुषिक अत्यचार की पराकाष्ठा होती है । जो शासक अपने मौज-शौक या स्वार्थ के लिए जनता को मरवा डालते हैं, वे भी दुष्ट राज्याधिप हैं, दण्डपरायण हैं । बलराजा ने एक राक्षसाधिष्ठित भयंकर वन से प्रतिदिन बीजौराफल लाने के लिए अपने नगर के एक नागरिक को जाने का कठोर आदेश दिया था, फलतः उस नगर के लोग वहाँ जाते और राक्षस के चंगुल में फँसकर खत्म हो जाते । कितना भयंकर दण्ड दिया उस दुष्ट राज्याधिप ने !
वर्तमान शासनकर्त्ताओं में भी दुष्टाधिपता
युग बदला, एकतन्त्रीय या
राजतन्त्रीय शासन पद्धति भारत से विदा हो गयी । लोकतन्त्रीय शासन पद्धति आयी, मगर तब भी जनता को शान्ति और अमनचैन कहाँ ? जहाँ जिस महकमे में देखो, सर्वत्र भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी आदि का बाजार गर्म है । एड़ी से लेकर चोटी तक के राज्य कर्मचारी ईमानदारी और वफादारी से प्रायः काम नहीं करते । जनता की शिकायतें सुनी नहीं जातीं, उन्हें न्याय और सुरक्षा अत्यन्त दुर्लभ हो गया है । आये दिन चोरी, डकैती, लूट-पाट की घटनाएँ होती रहती हैं । एक पार्टी वाला दूसरी पार्टी वाले की निन्दा, आलोचना करता रहता है । सत्तासीन पार्टी को उखाड़ने के लिए दूसरी पार्टियाँ कमर कसे रहती हैं। एक ही पार्टी में घटकवाद, गुटबाद और स्वार्थवाद के कारण तनातनी है । देश की भलाई के बजाय बुराई ही इनसे अधिक होती है । न गरीब, सुखी है, न अमीर और न मध्यमवित्त वाले सुखी है । महँगाई, आवश्यकता वृद्धि आदि बढ़ गई है । ऐसे शासनकर्ताओं से शिष्टाधिपता बहुत ही दूर हो गई है ।
' अन्य दुष्टाधिप भी दण्डपरायण !
दुष्ट राज्याधिप की तरह अन्य क्षेत्रों - सामाजिक, धार्मिक, पारिवारिक
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