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दुष्टाधिप होते दण्डपरायण-२
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पानं स्त्री मृगया द्यूतमर्थदूषणमेव च।
वाग्दण्डयोश्च पारुष्यं व्यसनानि महीभुजाम् ॥३॥ "मद्यपान, परस्त्रीगमन, वेश्यागमन, शिकार, छूत, शोषण, अन्याय, अत्यधिक कराधान आदि अर्थदोष, वाणी और दण्ड की कठोरता, ये राजाओं के दुर्व्यसन हैं, जो उन्हें पतित कर देते हैं।"
अदण्ड्यान् दण्डयन राजा, दण्ड्यांश्चैवादण्डयन् ।
अयशो महदाप्नोति, नरकं चैव गच्छति ॥४॥
"जो राजा अदण्डनीय को दण्डित करता है और दण्डनीय को दण्डित नहीं करता, वह महान् अपयश पाता है और नरक में जाता है।"
य उद्धरेत्करं राजा प्रजाः धर्मेस्वशिक्षयन् ।
प्रजानां शमलं भुक्ते, भगं च स्वं जहाति सः ॥५॥
"अपनी प्रजा पर जो धर्मयुक्त शासन न करके जो केवल उससे विविध कर वसूल करता है, वह प्रजाओं के पाप का उपभोग करता है और स्वयं अपने ऐश्वर्य को ठुकराता है।"
मोहाद् राजा स्वराष्ट्र यः, कर्षयत्यनवेक्षया ।
सोऽचिराद् भ्रश्यते राज्याद् जोविताच्च सबान्धवः ॥६॥ "जो राजा अज्ञानवश धन लेकर या मार-पीट कर अपने देश को पीडित और दुर्बल करता है, वह स्वजन-बान्धवों सहित शीघ्र ही राज्य और अपने जीवन से भ्रष्ट हो जाता है।"
जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी । सो नृप अवसि नरक-अधिकारी ॥
____दुष्ट राज्याधिप दण्डपरायण क्यों हो जाता है ? मैं अधिक न कहकर इतना ही कहूँगा कि जो शासक इस प्रकार से अत्याचारी, निरंकुश और सत्तामदान्ध हो जाता है, वह दुष्ट अधिप होकर प्रजा को मनमाने ढंग से पीड़ित करता है, वह जनता का शोषण करता है, निर्दोष सज्जनों को दण्ड देता है, उच्छृखल होकर चाहे जिसकी बहन-बेटी के प्रति कुदृष्टि रखकर उसके साथ बलात्कार करता है, दुर्व्यसनों में आसक्त होकर स्वयं राज्यकार्य नहीं सँभालकर भ्रष्ट कर्मचारियों और अधिकारियों के हाथ में सौंप देता है, जो जनता से रिश्वत लेकर उसका शोषण और उत्पीड़न करते रहते हैं।
१ विविध नीति ग्रन्थों, महाभारत आदि से उद्धृत । २ मनुस्मृति ७/१११। ३ रामचरितमानस अयोध्याकाण्ड ।
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