Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
उन्होंने बहली देश की सीमा पर सेना का पड़ाव डाला । बाहुबली भी अपनी विराट् सेना के साथ रणक्षेत्र में पहुँच गये। कुछ समय तक दोनों सेनाओं में युद्ध होता रहा। युद्ध में जनसंहार होगा, यह सोचकर बाहुबली ने सम्राट् भरत के सामने द्वन्द्वयुद्ध का प्रस्ताव रखा। सम्राट भरत ने उस प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार किया। दृष्टियुद्ध, वाक्युद्ध, मुष्टियुद्ध और दण्डयुद्ध के द्वारा दोनों का बल परीक्षण करने का निर्णय लिया गया। सर्वप्रथम दृष्टियुद्ध हुआ। इस युद्ध में दोनों ही वीर अनिमेष होकर एक दूसरे के सामने खड़े हो गये और अपलक नेत्रों से एक दूसरे को निहारते रहे। अन्त में संध्या के समय भरत के मुख पर सूर्य आ जाने से उनकी पलकें बन्द हो गई। प्रथम दृष्टियुद्ध में बाहुबली विजयी हुए।
दृष्टियुद्ध के बाद वाग्युद्ध प्रारम्भ हुआ। दोनों ही वीरों ने पुनः पुनः सिंहनाद किया। भरत का स्वर धीरेधीरे मन्द होता चला गया व बाहुबली का स्वर धीरे-धीरे उदात्त बनता चला गया। इस युद्ध में भी भरत बाहुबली से पराजित हो गये। दोनों युद्धों में पराजित होने से भरत खिन्न थे। उन्होंने मुष्टियुद्ध प्रारम्भ किया। भरत ने क्रुद्ध होकर बाहुबली के वक्षस्थल पर मुष्टिका प्रहार किया, जिससे बाहुबली कुछ क्षणों के लिये मूर्छित हो गए। जब उनकी मूर्छा दूर हुई तो बाहुबली नें भरत को उठाकर गेंद की तरह आकाश में उछाल दिया। बाहुबली का मन अनुताप से भर गया कि कहीं भाई जमीन पर गिर गया तो मर जायेगा। उन्होंने गिरने से पूर्व ही भरत को भुजाओं में पकड़ लिया
और भरत के प्राणों की रक्षा की। भरत लज्जित थे। उन्होंने बाहुबली के सिर पर मुष्टिका-प्रहार किया पर बाहुबली पर कोई असर नहीं हुआ। जब बाहुबली ने मुष्टिका-प्रहार किया तो भरत मूर्छित होकर जमीन पर लुढ़क पड़े। मूर्छा दूर होने पर भरत ने दंड से बाहुबली के मस्तक पर प्रहार किया। दण्ड-प्रहार से बाहुबली की आँखे बन्द हो गई और वे घटनों तक जमीन में धंस गये। बाहबली पनः शक्ति को बर्टोर कर बाहर निकले। भरत पर उन्होंने प्रहार किया तो भरत गले तक जमीन में धंस गये। सभी युद्धों में भरत् पराजित हो गये थे। उनके मन में यह प्रश्न कौंधने लगा कि चक्रवर्ती सम्राट् मैं हूँ या बाहुबली है ? ' भरत इस संकल्प-विकल्प में उलझे हुए थे कि उसी समय यक्षराजाओं ने भरत के हाथ में चक्ररत्न थमा दिया। मर्यादा को विस्मृत कर बाहुबली के शिरोच्छेदन करने हेतु भरत में अपना अन्तिम शस्त्र बाहुबली पर चला दिया। सारे दर्शक देखते रह गये कि अब बाहुबली नहीं बच पायेंगे। बाहुबली का खून भी खौल उठा, वे उछल कर चक्र रत्न को पकड़ना चाहते थे पर चक्ररत्न बाहुबली की प्रदक्षिणा कर पुनः भरत के पास लौट गया। वह बाहुबली का बाल भी बांका नहीं कर सका । २ भरत अपने कृत्य पर लज्जित थे।
बाहुबली का क्रोध चरम सीमा पर पहुंच गया था। उन्होंने सम्राट् भरत और चक्र को नष्ट करने के लिये मुट्ठी उठाई तो सभी के स्वर फूट पड़े-सम्राट् भरत ने भूल की है पर आप न करें। छोटे भाई के द्वारा बड़े भाई की हत्या अनुचित ही नहीं अत्यन्त अनुचित है। आप महान् पिता के पुत्र हैं, अतः क्षमा करें। बाहुबली का क्रोध शान्त हो गया। उनका हाथ भरत पर न पड़कर स्वयं के सिर पर आ गया। वे केशलुञ्चन कर श्रमण बन गये।
१. (क) आवश्यकभाष्य, गाथा ३३
- (ख) आवश्यकचूर्णि २१० २. त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित १।५।७२२-७२३ ३., त्रिषष्टि.१।५।७४६ । ४. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित १।५।७४०-७४२
[४५]