Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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द्वितीय वक्षस्कार ]
२०. शयनविधि - पलंग आदि शयन सम्बन्धी वस्तुओं की संयोजना, सुसज्जा आदि का ज्ञान,
२१. आर्या - आर्या छन्द रचने की कला,
२२. प्रहेलिका- गूढाशय वाले पद्य, पहेलियाँ रचना, उनका हल प्रस्तुत करना,
२३. मागधिका - मागधिका छन्द में रचना करने की कला,
२४. गाथा - संस्कृतभिन्न अन्य भाषा में आर्या छन्द में रचना,
२५. गीतिका - पूर्वार्द्ध के सदृश उत्तरार्द्ध-लक्षणा आर्या में रचना, २६. श्लोक - अनुष्टुप - विशेष में रचना,
२७. हिरण्ययुक्ति - चाँदी के यथोचित संयोजन की कला,
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२८. स्वर्णयुक्ति - सोने के यथोचित संयोजन की कला,
२९. चूर्णयुक्ति-कोष्ठ आदि सुगन्धित पदार्थों का बुरादा बनाकर उसमें अन्य पदार्थों का मेलन,
३०. आभरणविधि - आभूषण अलंकार द्वारा सज्जा,
३१. तरुणी - परिकर्म - युवतियों के श्रृंगार, प्रसाधन की कला,
. ३२. स्त्रीलक्षण - सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार स्त्रियों के शुभ-अशुभ लक्षणों का ज्ञान,
३३. पुरुषलक्षण - सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार पुरुषों के शुभ तथा अशुभ लक्षणों का ज्ञान, ३४. हयलक्षण—शालिहोत्र शास्त्र के अनुसार घोड़े के शुभ-अशुभ लक्षणों का ज्ञान, ३५. गजलक्षण - हाथी के शुभ-अशुभ लक्षणों का ज्ञान,
३६. गोलक्षण - गोजातीय पशुओं के शुभ-अशुभ लक्षणों का ज्ञान,
३७. कुक्कुटलक्षण - मुर्गों के शुभ-अशुभ लक्षणों का ज्ञान,
३८. छत्रलक्षण—चक्रवर्ती के छत्र-रत्न आदि का ज्ञान,
३९. दण्डलक्षण – छत्र आदि में लगने वाले दंड के सम्बन्ध में ज्ञान
४०. असिलक्षण - तलवार सम्बन्धी ज्ञान
४१. मणिलक्षण - रत्न - परीक्षा
४२. काकणिलक्षण - चक्रवर्ती के काकणि रत्न का विशेष ज्ञान,
४३. वास्तुविद्या - गृह - भूमि के गुण-दोषों का परिज्ञान,
४४. स्कन्धावार मान — सेना के पड़ाव या शिविर के परिमाण या विस्तार के सम्बन्ध में ज्ञान,
४५. नगरमान - नगर के परिमाण के सम्बन्ध में जानकारी - नूतन नगर बसाने की कला,
४६. चार- गृह - गणना का विशेष ज्ञान
४७. प्रतिचार - ग्रहों के वक्र-गमन आदि प्रतिकूल चाल का ज्ञान
४८. व्यूह - युद्धोत्सुक सेना की चक्रव्यूह आदि के रूप में जमावट,
४९. प्रतिव्यूह - व्यूह को भंग करने में उद्यत सेना की व्यूह के प्रतिकूल स्थापना या जमावट, ५०. चक्रव्यूह - चक्र के आकार की सैन्य रचना,
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