Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
भो देवाणुप्पिया ! उस्सुक्कं, उक्करं, उक्किट्ठे, अदिज्जं, अमिज्जं, अभडप्पवेसं, अदंडकोदंडिमं, अधरिमं, गणिआवरणाडइज्जकलियं, अणेगतालायराणुचरियं, अणुद्धअमुइंगं, अमिलायमल्लदामं, पमुइय-पक्कीलियसपुरजणजाणवयं विजयवेजइयं चक्करयणस्स अट्ठाहिअं महामहिमं करेइ, करेत्ता ममेयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह ।
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तणं ताओ अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ भरहेणं रन्ना एवं वुत्ताओ समाणीओ हट्ठाओ जाव' विणणं वयणं पडिसुर्णेति, पडिसुणित्ता भरहस्स रण्णो अंतियाओ पडिणिक्खमेंति, पडिणिक्खमित्ता उस्सुक्कं, उक्करं, ( उक्किट्ठे, अदिज्जं, अमिज्जं, अभडप्पवेसं, अदंडकोदंडिमं, अधरिमं, गणिआवरणाडइज्जकलियं, अणेगतालायराणुचरियं, अणुद्धअमुइंगं, अमिलायमल्लदामं, पमुइय-पक्कीलियसपुरजणजाणवयं विजयवेजइयं चक्करयणस्स अट्ठाहिअं महामहिमं) करेंति य कारवेंति य, करेत्ता कारवेत्ता य जेणेव भरहे राया, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता जाव तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।
[ ५६ ] राजा भरत के पीछे-पीछे बहुत से ऐश्वर्यशाली विशिष्ट जन चल रहे थे । उनमें से किन्हींकिन्हीं के हाथों में पद्म, (कुमुद, नलिन, सौगन्धिक, पुंडरीक, सहस्रपत्र - हजार पंखुड़ियों वाले कमल तथा) शतसहस्रपत्र कमल 1
राजा भरत की बहुत सी दासियाँ भी साथ थीं। उनमें से अनेक कुबड़ी थीं, अनेक किरात देश की थीं, अनेक बौनी थीं, अनेक ऐसी थीं, जिनकी कमल झुकी थीं, अनेक बर्बर देश की, वकुश देश की, यूनान देश की, पह्नव देश की, इसिन देश की, थारुकिनिक देश की, लासक देश की, लकुश देश की, सिंहल देश की, द्रविड़ देश की, अरब देश की, पुलिन्द देश की, पक्कण देश की, बहल देश की, मुरुंड देश की, शबर देश की, पारस देश की - यों विभिन्न देशों की थीं।
उनमें से किन्हीं - किन्हीं के हाथों में मंगलकलश, भृंगार - झारियाँ, दर्पण, थाल, रकाबी जैसे छोटे पात्र, सुप्रतिष्ठक, वातकरक - करवे, रत्नकरंडक - रत्न मंजूषा, फूलों की डलिया, माला, वर्ण, चूर्ण, गन्ध, वस्त्र, आभूषण, मोर पंखों से बनी फूलों के गुलदस्तों से भरी डलिया, मयूरपिच्छ, सिंहासन, छत्र, चँवर तथा तिलसमुद्गक — तिल के भाजन - विशेष - डिब्बे जैसे पात्र आदि भिन्न-भिन्न वस्तुएँ थीं ।
इनके अतिरिक्त कतिपय दासियाँ तेल- समुद्गक, कोष्ठ - समुद्गक, पत्र - समुद्गक, चोय (सुगन्धित द्रव्य - विशेष ) - समुद्गक, तगर - समुद्गक, हरिताल - समुद्गक, हिंगुल - समुद्गक, मैनसिल - समुद्गक, तथा सर्षप(सरसों)-समुद्गक लिये थीं । कतिपय दासियों के हाथों में तालपत्र - पंखे, धूपकडच्छुक - धूपदान थे।
यों वह राजा भरत सब प्रकार की ऋद्धि, द्युति, बल, समुदय, आदर, विभूषा, वैभव, वस्त्र, पुष्प, गन्ध, अलंकार—इस सबकी शोभा से युक्त (महती ऋद्धि, द्युति, बल, समुदय, आदर, विभूषा, वैभव, वस्त्र, पुष्प, गन्ध, अलंकार सहित ) कलापूर्ण शैली में एक साथ बजाये गये शंख, प्रणव, पटह, भेरी, झालर, खरमुखी, १. देखें सूत्र यही