Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सप्तम वक्षस्कार ]
इंदिआई इ, पुव्वासाढा पण्णरस राइंदिआई णेइ, उत्तरासाढा एगं राइंदिअं णेइ । तया णं समचउरंसंसंठाणसंठिआए णग्गोहपरिमण्डलाए सकायमणुरंगिआए छायाए सूरिए अणुपरिअट्टइ । तस्स णं मासस्स जे से चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि लेहट्ठाई दो पयाई पोरिसी भवइ । एतेसि णं पुव्ववण्णिआणं पयाणं इमा संगहणी तं जहा
जोगो देवयतारग्गगोत्तसंठाण - चन्दरविजोगो । कुलपुण्णिमअवमंसा णेआ छाया य बोद्धव्वा ॥ १॥
[१९५] भगवन् ! चातुर्मासिक वर्षाकाल के प्रथम - श्रावण मास को कितने नक्षत्र परिसमाप्त करते
हैं ?
गौतम ! उसे चार नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं
१. उत्तराषाढा, २. अभिजित्, ३. श्रवण तथा ४. घनिष्ठा ।
[३९३
उत्तराषाढा नक्षत्र श्रवण मास के १४ अहोरात्र - दिनरात परिसमाप्त करता है, अभिजित् नक्षत्र ७ अहोरात्र परिसमाप्त करता है, श्रवण नक्षत्र ८ अहोरात्र परिसमाप्त करता है तथा धनिष्ठा नक्षत्र १ अहोरात्र परिसमाप्त करता है। (१४+७+८+१=३० दिनरात १ मास)
उस मास में सूर्य चार अंगुल अधिक पुरुषछायाप्रमाण परिभ्रमण करता |
उस मास के अन्तिम दिन चार अंगुल अधिक दो पद पुरुषछायाप्रमाण पौरुषी होती है, अर्थात् सूरज के ताप में इतनी छाया पड़ती है - पौरुषी या प्रहर - प्रमाण दिन चढ़ता है ।
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भगवन् ! वर्षाकाल के दूसरे - भाद्रपद मास को कितने नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं ?
गौतम ! उसे चार नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं - १. धनिष्ठा, २. शतभिषक्, ३. पूर्वभाद्रपदा तथा ४.
उत्तरभाद्रपदा ।
धनिष्ठा नक्षत्र १४ अहोरात्र परिसमाप्त करता है, शतभिषक् नक्षत्र ७ अहोरात्र परिसमाप्त करता है, पूर्वभाद्रपदा नक्षत्र ८ अहोरात्र परिसमाप्त करता है तथा उत्तरभाद्रपदा नक्षत्र १ अहोरात्र परिसमाप्त करता है । (१४+७+८+१=३० दिनरात १ मास)
=
उस मास में सूर्य आठ अंगुल अधिक पुरुषछायाप्रमाण अनुपर्यटन करता है ।
उस महीने के अन्तिम दिन आठ अंगुल अधिक दो पद पुरुषछायाप्रमाण पौरुषी होती है ।
भगवन् ! वर्षाकाल के तीसरे आश्विन - आसौज मास को कितने नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं ? गौतम ! उसे तीन नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं - १. उत्तरभाद्रपदा, २. रेवती तथा ३. अश्विनी ।
उत्तरभाद्रपदा नक्षत्र श्रवण मास के १४ दिनरात परिसमाप्त करता है, रेवती नक्षत्र १५ दिनरात परिसमाप्त करता है तथा अश्विनी नक्षत्र १ दिनरात परिसमाप्त करता है । ( १४+१५+१=३० दिनरात १ मास) ।
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उस मास में सूर्य १२ अंगुल अधिक पुरुषछायाप्रमाण अनुपर्यटन करता है । उस मास के अन्तिम दिन परिपूर्ण तीन पद पुरुषछायाप्रमाण पौरसी होती है ।