Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 471
________________ ४०८ ] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र [२०४] भगवन् ! ज्योतिष्क देवों के इन्द्र, ज्योतिष्क देवों के राजा चन्द्र के कितनी अग्रमहिषियांप्रधान देवियां बतलाई गई हैं ? गौतम ! चार अग्रमहिषियां बतलाई गई हैं-१. चन्द्रप्रभा, २. ज्योत्स्नाभा, ३. अर्चिमाली तथा ४. प्रभंकरा। ___ उनमें से एक-एक अग्रमहिषी का चार-चार हजार देवी-परिवार बतलाया गया है। एक-एक अग्रमहिषी अन्य सहस्र देवियों को विकुर्वणा करने में समर्थ होती है। यों विकुर्वणा द्वारा सोलह हजर देवियाँ निष्पन्न होती हैं। वह ज्योतिष्कराज चन्द्र का अन्तःपुर है। भगवन् ! क्या ज्योतिष्केन्द्र, ज्योतिष्कराज, चन्द्रावतंसक विमान में चन्द्रा राजधानी में सुधर्मा सभा में अपने अन्त:पुर के साथ-देवियों के साथ नाट्य, गीत, वाद्य आदि का आनन्द लेता हुआ दिव्य भोग भोगने में समर्थ होता है ? ___ गौतम ! ऐसा नहीं होता-ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र सुधर्मा सभा से अपने अन्तःपुर के साथ दिव्य भोग नहीं भोगता। भगवन् ! वह दिव्य भोग क्यों-किस कारण नहीं भोगता ? गौतम ! ज्योतिष्केन्द्र, ज्योतिष्कराज चन्द्र के चन्द्रावतंसक विमान में चन्द्रा राजधानी में सुधर्मा सभा में माणवक नामक चैत्यस्तंभ है। उस पर वज्रमय-हीरक-निर्मित गोलाकार सम्पुटरूप पात्रों में बहुत सी जिन-सक्थियाँ-जिनेन्द्रों की अस्थियाँ स्थापित हैं। वे चन्द्र तथा अन्य बहुत से देवों एवं देवियों के लिए अर्चनीय-पूजनीय तथा पर्युपासनीय हैं । इसलिए उनके प्रति बहुमान के कारण आशातना के भय से अपने चार हजार सामानिक देवों से संपरिवृत चन्द्र सुधर्मा सभा में अपने अन्त:पुर के साथ दिव्य भोग नहीं भोगता। वह वहाँ केवल अपनी परिवार-ऋद्धि-यह मेरा अन्तःपुर है, परिचर है, मैं इनका स्वामी हूं-यों अपने. वैभव तथा प्रभुत्व की सुखानुभूति कर सकता है, मैथुन सेवन नहीं करता। सब ग्रहों आदि ' की १. विजया, २. वैजयन्ती, ३. जयन्ती तथा ४. अपराजिता नामक चार-चार अग्रमहिषियाँ हैं। यों १७६ ग्रहों की इन्हीं नामों की अग्रमहिषियाँ हैं। गाथाएँ ग्रह १. अ!कारक, २. विकालक, ३. लोहिताङ्क, ४. शनैश्चर, ५. आधुनिक, ६. प्राधुनिक, ७. कण, ८. कणक, ९. कणकणक, १०. कणवितानक, ११. कणसंतानक, १२. सोम, १३. सहित, १४. आश्वासन, १५. कार्योपग, १६. कुर्बरक, १७. अजकरक, १८. दुन्दुभक, १९. शंख, २०. शंखनाभ, २१. शंखवर्णाभ-यों भावकेतु २ पर्यन्त ग्रहों का उच्चारण करना चहिए। उन सबकी अग्रमहिषियाँ उपर्युक्त नामों की हैं। ५. यहाँ नक्षत्रों एवं तारों का भी ग्रहण है। २. २२. कंस, २३. कंसनाभ, २४. कंसवर्णाभ, २५. नील, २६. नीलावभास, २७. रुप्पी, २८. रुप्यवभास, २९. भस्म, ३०. भस्मराशि,

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