Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
प्रसन्नता का अनुभव किया ।
उसने हाथ जोड़कर ‘स्वामी! जो आज्ञा' कहकर विनयपूर्वक राजा का आदेश स्वीकार किया। उसने राजा के लिए आवास-स्थान तथा पोषधशाला का निर्माण किया । निर्माण कर राजा को शीघ्र ज्ञापित किया कि उनके आदेशानुरूप कार्य हो गया है।
तब राजा भरत आभिषेक्य हस्तिरत्न से नीचे उतरा । नीचे उतरकर जहाँ पोषधशाला थी, वहाँ आया। आकार पोषधशाला में प्रविष्ट हुआ, पोषधशाला का प्रमार्जन किया, सफाई की। प्रमार्जन कर दर्भ - डाभ बिछौना बिछाया। बिछौना बिछाकर उस पर स्थित हुआ-बैठा। बैठकर उसने मागध तीर्थकुमार देव को उद्दिष्ट कर तत्साधना हेतु तीन दिनों का उपवास - तेले की तपस्या स्वीकार की । तपस्या स्वीकार कर पोषधशाला में पोषध लिया - व्रत स्वीकार किया । मणि - स्वर्णमय आभूषण शरीर से उतार दिये। माला, वर्णक- चन्दनादि सुगन्धित पदार्थों के देहगत विलेपन आदि दूर किये, शस्त्र - कटार आदि, मूसल - दण्ड, गदा आदि हथियार एक ओर रखे। यों डाभ के बिछौने पर अवस्थित राजा भरत निर्भीकता - निर्भयभाव से आत्मबलपूर्वक तेले की तपस्या में प्रतिजागरित - सावधानी से संलग्न हुआ ।
तेले की तपस्या परिपूर्ण हो जाने पर राजा भरत पौषधशाला से बाहर निकला। बाहर निकलकर जहाँ बाहरी उपस्थानशाला थी, वहाँ आया । आकर अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया । बुलाकर उन्हें इस प्रकार कहा— देवानुप्रियो ! घोड़े, हाथी, रथ एवं उत्तम योद्धाओं - पदातियों से सुशोभित चतुरंगिणी सेना को शीघ्र सुसज्ज करो। चातुर्घंट-चार घंटाओं से युक्त - अश्वरथ तैयार करो। यों कहकर राजा स्नानगृह में प्रविष्ट हुआ। प्रविष्ट होकर, स्नानादि से निवृत्त होकर राजा स्नानघर से निकला । वह श्वेत, विशाल बादल से निकले, ग्रहगण, से देदीप्यमान, आकाश-स्थित तारों के मध्यवर्ती चन्द्र के सदृश देखने में बड़ा प्रिय लगता था। स्नानघर से निकलकर घोड़े, हाथी, रथ, अन्यान्य उत्तम वाहन तथा ( योद्धाओं के विस्तार से युक्त) सेना से सुशोभित वह राजा जहाँ बाह्य उपस्थानशाला थी, चातुर्घंट अश्वरथ था, वहाँ आया । आकर रथारूढ हुआ । मागधतीर्थ - विजय
५८. तए णं से भरहे राया चाउग्घंटं आसरहं दुरूढे समाणे हय-गय-रहपवर - जोह कलिआए सद्धिं संपरिवुडे महया - भडचडगरपहगरवंदपरिक्खित्ते चक्करयणदेसिअमग्गे अणेगरायवर-सहस्साणुआयमग्गे महया उक्किट्ठ-सीहणायबोल - कलकलरवेणं पक्खुभिअमहासमुद्दरव-भूअं पिव करेमाणे करेमाणे पुरत्थिमदिसाभिमुहे मागहतित्थेणं लवणसमुद्द ओगाहइ जाव से रहवरस्स कुप्परा उल्ला।
तए णं से भरहे राया तुरगे निगिण्हित्ता रहं ठवेइ ठवेत्ता धणुं परामुसइ, तए णं तं अइरु ग्गयबालचन्द - इंदधणुसंकासं वरमहि सदरि अदप्पि अदढ घणसिंगरइअसारं उरगवरपवरगवल-पवरपरहु अभमरकु लणीलिणिद्धं धं तदोअपट्टं णिउणोवि अमिसिमिसिंतमणिरयणघंटिआजालपरिक्खित्तं तडित्तरुणकिरणतवणिज्ज-बद्धचिंधं दद्दरमलयगिरिसिहरके सरचामरवालद्धचंदचिंधं काल-हरिअ-रत्त- पीअ - सुक्किल्लबहु प्रहारु णिसंपिणद्धजीवं जीविअंतकरणं चलजीवं धणूं गहिऊण से णरवई उसुं च वरवइरकोडिअं