Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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३४६ ]
मेरुस्स मज्झयारे जाव य लवणस्स रुंदछब्भागो । तावायामो एसो सगडुद्धीसंठिओ नियमा ॥ १॥
तया णं भंते! किसंठिआ अंधकारसंठिई पण्णत्ता ?
[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
गोयमा ! उद्धीमुहकलंबुआपुप्फसंठाणसंठिआ अंधकारसंठिई पण्णत्ता, अंतो संकुआ, बाहिं वित्थडा तं चेव (अंतो वट्टा, बाहिं विउला, अंतो अंकमुहसंठिआ, बाहिं सगडुद्धीमुहसंठिआ । )
तीसे णं सव्वब्भंतरिआ बाहा मंदरपव्वयंतेणं छज्जोअणसहस्साइं तिण्णि अ चडवीसे जोअणसए छच्च दसभाए जोअणस्स परिक्खेवेणंति ।
से णं भंते ! परिक्खेवविसेसे कओ आहिएत्तिवएज्जा ?
गोयमा ! जे ण मंदरस्स पव्वयस्स परिक्खेवे तं परिक्खेवं, दोहिं गुणेत्ता दसहिं छेत्ता दसहिं भागे हीरमाणे एस णं परिक्खेवविसेसे आहिएत्ति वएज्जा ।
तीसे णं सव्वबाहिरिआ बाहा लवणसमुद्दंतेणं तेसट्ठी जोअणसहस्साइं दोण्णि य पणयाले जोअणसए छच्च दसभाए जोअणस्स परिक्खेवेणं ।
से णं भंते ! परिक्खेवविसेसे कओ आहिएत्ति वएज्जा ?
गोमा ! जेणं जम्बुद्दीवस्स परिक्खेवे तं परिक्खेवे दोहिं गुणेत्ता (दसहिं छेत्ता दसहिं भागे हीरमाणे एस णं परिक्खेवविसेसे आहिएत्ति वएज्जा) तं चेव ।
तया णं भंते ! अंधयारे केवइए आयामेणं पण्णत्ते ?
गोया ! अट्ठहत्तरं जोअणसहस्साइं तिण्णि अ तेत्तीसे जोअणसए तिभागं च आयामेणं पण्णत्ते ।
जया णं भंते! सूरिए सव्वबाहिरमंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं किंसठिआ तावक्खित्तसंठिई पण्णत्ता ?
गोयमा ! उद्धीमुहकलंबु आपुप्फसंठाणसंठिआ पण्णत्ता । तं चैव सव्वं णेअव्वं णवरं णाणत्तं जं अंधयारसंठिइए पुव्ववण्णिअं पमाणं तं तावखित्तसंठिईए अव्वं, तं ताव खित्तसंठिईए पुव्ववण्णिअं पमाणं तं अंधयारसंठिईए णेअव्वंति ।
[१६८] भगवन् ! जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है, तो उसके तापक्षेत्र की स्थिति - स के आतप से परिव्याप्त आकाश - खण्ड की स्थिति - उसका संस्थान किस प्रकार का बतलाया गया है ?
गौतम ! तब ताप - क्षेत्र की स्थिति ऊर्ध्वमुखी कदम्ब - पुष्प के संस्थान जैसी होती है - उसकी ज्यों संस्थित होती है। वह भीतर - मेरु पर्वत की दिशा में संकीर्ण - संकड़ी तथा बाहर - लवणसमुद्र की दिशा
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