Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सप्तम वक्षस्कार]
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गोयमा ! गोसीसावलिसंठिए पण्णत्ते, गाहा
गोसीसावति १ काहार २ सउणि ३ पुष्फोवयार ४ वावी य ५-६। णावा ७ आसक्खंधग ८ भग ९ छुरघरए १० असगडुद्धी ११ ॥१॥ मिगसीसावलि १२ रुहिरबिंदु १३ तुल्ल १४ वद्धमाणग १५ पडागा १६ । पागारे १७ पलिअंके १८-१९ हत्थे २० मुहफुल्लए २१ चेव ॥२॥ खीलग २२ दामणि २३ एगावली २४ अ गयदंत २५ बिच्छुअअले य २६।
गयविक्कमे २७ अ तत्तो सीहनिसीही अ २८ संठाणा ॥ ३ ॥ [१९२] भगवन् ! इन अट्ठाईस नक्षत्रों में अभिजित् नक्षत्र का क्या गोत्र बतलाया गया है ? गौतम ! अभिजित् नक्षत्र का मौद्गलायन गोत्र बतलाया गया है।
गाथार्थ-प्रथम से अन्तिम नक्षत्र तक सब नक्षत्रों के गोत्र इस प्रकार हैं-१. अभिजित् नक्षत्र का मौद्गलायन, २. श्रवण नक्षत्र का सांख्यायन, ३. धनिष्ठा नक्षत्र का अग्रभाव, ४. शतभिषक् नक्षत्र का कण्णिलायन, ५. पूर्वभाद्रपदा नक्षत्र का जातुकर्ण, ६. उत्तरभाद्रपदा नक्षत्र का धनञ्जय, ७. रेवती नक्षत्र का पुष्यायन, ८. अश्विनी नक्षत्र का अश्वायन, ९. भरणी नक्षत्र का भार्गवेश, १०. कृत्तिका नक्षत्र का अग्निवेश्य, ११. रोहिणी नक्षत्र का गौतम, १२. मृगशिर नक्षत्र का भारद्वाज, १३. आर्द्रा नक्षत्र का लोहत्यिायन १४. पुनर्वसु नक्षत्र का वासिष्ठ, १५. पुष्य नक्षत्र का अवमज्जायन, १६. अश्लेषा नक्षत्र का माण्डव्यायन, १७. मघा नक्षत्र का पि!पयन, १८. पूर्वफाल्गुनी नक्षत्र का गोवल्लायन, १९. उत्तरफाल्गुनी नक्षत्र का काश्यप, २०. हस्त नक्ष6 का कौशिक, २१. चित्रा नक्षत्र का दार्भायन, २२ स्वाति नक्षत्र का चामरच्छायन, २३ विशाखा नक्षत्र का शु!ायन, २४. अनुराधा नक्षत्र का गोलव्यायन, २५. ज्येष्ठा नक्ष6 का चिकित्सायन, २६. मूल नक्षत्र का कात्यायन, २७. पूर्वाषाढा नक्षत्र का बाभ्रव्यायन तथा उत्तराषाढा नक्षत्र का व्याघ्रपत्य गोत्र बतलाया गया है।
भगवन् ! इन अट्ठाईस नक्षत्रों में अभिजित् नक्षत्र का कैसा संस्थान-आकार है ?
गौतम ! अभिजित् नक्षत्र का संस्थान गोशीर्षावलि-गाय के मस्तक के पुद्गलों की दीर्घ रूप-लम्बी श्रेणी जैसा है।
गाथार्थ-प्रथम से अन्तिम तक सब नक्षत्रों के संस्थान इस प्रकार हैं
१. अभिजित् नक्षत्र का गोशीर्षावलि के सदृश, २. श्रवण नक्षत्र का कासार-तालाब के समान, ३. धनिष्ठा नक्षत्र का पक्षी के कलेवर के सदृश, ४. शतभिषक् नक्षत्र का पुष्प-राशि के समान, ५. पूर्वभाद्रपदा नक्षत्र का अर्धवापी-आधी बावड़ी के तुल्य, ६. उत्तरभाद्रपदा नक्षत्र का भी अर्धवापी के सदृश, ७. रेवती नक्षत्र का नौका के सदृश, ८. अश्विनी नक्षत्र का अश्व के-घोड़े के स्कन्ध के समान, ९. भरणी नक्षत्र का भग के समान, १०. कृत्तिका नक्षत्र का क्षुरगृह-नाई की पेटी के समान, ११. रोहिणी नक्षत्र का गाड़ी की धुरी के समान, १२. मृगशिर नक्षत्र का मृग के मस्तक के समान, १३. आर्द्रा नक्षत्र का रुधिर की बूंद के समान, १४. पुनर्वसु नक्षत्र का तराजू के सदृश, १५. पुष्य नक्षत्र का सुप्रतिष्ठित वर्द्धमानक-एक विशेष आकार