Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 418
________________ सप्तम वक्षस्कार ] पकी ईंट के आकर में संस्थित, चन्द्रसूर्यापेक्षया लाखों योजन विस्तीर्ण तापक्षेत्रयुक्त, नानाविध विकुर्वित रूप धारण करने में सक्षम, लाखों बाह्य परिषदों से संपरिवृत ज्योतिष्कदेव (नाट्य-गीत-वादन रूप त्रिविध संगीतोपक्रम में जोर-जोर से बजाये जाते तन्त्री - तल-ताल- त्रुटित-घन-मृदंग इन ) वाद्यों से उत्पन्न मधुर ध्वनि के आनन्द के साथ दिव्य भोग भोगने में अनुरत, सुखलेश्यायुक्त ' शीतकाल सी कड़ी शीतलता से रहित, प्रियकर सुहावनी शीतलता से युक्त, मन्दलेश्यायुक्त - ग्रीष्मकाल की तीव्र उष्णता से रहित, मन्द आतप रूप श्या से युक्त, विचित्र - विविधलेश्यायुक्त, परस्पर अपनी-अपनी लेश्याओं द्वारा अवगाढ - मिलित, पर्वत की चोटियों की ज्यों अपने-अपने स्थान में स्थित, सब ओर से अपने प्रत्यासन्न - समीपवर्ती प्रदेशों को अवभासित करते हैं - आलोकित करते हैं, उद्योतित करते हैं, प्रभासित करते हैं । भगवन् ! जब मानुषोत्तर पर्वत के बहिर्वर्ती इन ज्योतिष्क देवों का इन्द्र च्युत होता है तो वे अपने "यहाँ कैसी व्यवस्था करते हैं ? [ ३५५ गौतम ! जब तक नया इन्द्र नहीं होता तब तक चार या पांच सामानिक देव परस्पर एकमत होकर, मिलकर इन्द्र स्थान का परिपालन करते हैं- स्थानापन्न के रूप में कार्य संचालन करते हैं - व्यवस्था करते हैं । भगवन् ! इन्द्र स्थान कितने समय तक इन्द्रोत्पत्ति से विरहित रहता है ? गौतम ! वह कम से कम एक समय पर्यन्त तथा अधिक से अधिक छः मास पर्यन्त इन्द्रोत्पत्ति से विरहित रहता है । चन्द्र मण्डल : संख्या : अबाधा आदि १७५. कइ णं भंते ! चंद- मण्डला पण्णत्ता ? गोयम ! पण्णरस चंद मण्डला पण्णत्ता । जम्बुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइअं ओगाहित्ता केवइआ चन्द - मण्डला पण्णत्ता ? गोयमा ! जम्बुद्दीवे २ असीयं जोअण-सय ओगाहित्ता पंच चन्द - मण्डला पण्णत्ता । लवणे णं भंते पुच्छा ? गोयमा ! लवणे णं समुद्दे तिण्णि तीसे जोअण-सए ओगाहित्ता एत्थ णं दस चन्द - मण्डला पण्णत्ता । एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे लवणे य समुद्दे पण्णरस चन्द - मण्डला भवन्तीतिमक्खायं । [ १७५] भगवन् ! भगवन् ! चन्द्र-मण्डल कितने बतलाये गये हैं ? गौतम ! चन्द्र-मण्डल १५ बतलाये गये हैं । १. चन्द्रों के लिए २. सूर्यो के लिए

Loading...

Page Navigation
1 ... 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482