Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 417
________________ ३५४ ] आवर्तन में मेरु दक्षिण में रहता है, वह प्रदक्षिणावर्त मण्डल कहा जाता है । इन्द्रच्यवन : अन्तरिम व्यवस्था [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र १७४. तेसि णं भंते ! देवाणं जाहे इंदे चुए भवइ, से कहमियाणिं पकरेंति ? गोयमा ! ताहे चत्तारि पंच वा सामाणिआ देवा तं ठाणं उवसंपज्जित्ता णं विहरंति जाव तत्थ अण्णे इंदे उववण्णे भवइ । इंदट्ठाणे णं भंते! केवइअं कालं उववाएणं विरहिए ? गोयमा ! जहणेणं एगं समयं उक्कोसेणं छम्मासे उववाएणं विरहिए । बहिआ णं भंते ! माणुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिम - ( सूरिअ - गहगण - णक्खत्त - ) तारारूवा तं चेव णेअव्वं णाणत्तं विमाणोववण्णगा णो चारोववण्णगा, चारठिईआ णो गइरइआ णो गइसमावण्णगा। पक्किट्टग-संठाण-संठिएहिं जोअण-सय- साहस्सिएहिं तावखित्तेहिं सय- साहस्सिआहिं वेउव्विआहिं बाहिराहिं परिसाहिं महया हयणट्ट (गीअवाइअतंतीतलतालतुडिअघणमुइंगपडुप्पवाइअरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाई) भुंजमाणा सुहलेसा मंदलेसा मंदातवलेसा चित्तंतरलेसा अण्णोण्णसमोगाढाहिं लेसाहिं कूडाविव ठाणठिआ सव्वओ समन्ता ते पएसे ओभासंति उज्जोवेंति पभार्सेतित्ति । तेसिं णं भंते ! देवाणं जाहे इंदे चुए से कहमियाणिं पकरेन्ति ( गोयमा ! ताहे चत्तारि पंच वा सामाणिआ देवा तं ठाणं उवसंपज्जित्ता णं विहरंति जाव तत्थ अण्णे इंदे उववण्णे भवइ । इंदाणे णं भंते! केवइअं कालं उववाएणं विरहिए ? गोयमा ! ) जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं छम्मासा इति । [१७४] भगवन् ! उन ज्योतिष्क देवों का इन्द्र जब च्युत (मृत) हो जाता है, तब इन्द्रविरहकाल में देव कैसा करते है - किस प्रकार काम चलाते हैं ? गौतम ! जब तक दूसरा इन्द्र उत्पन्न नहीं होता, तब तक चार या पांच सामानिक देव मिल कर इन्द्र - स्थान का परिपालन करते हैं - स्थानापन्न के रूप में कार्य संचालन करते हैं । भगवन् ! इन्द्र का स्थान कितने समय तक नये इन्द्र की उत्पत्ति से विहरित रहता है ? गौतम ! वह कम से कम एक समय तथा अधिक से अधिक छह मास तक इन्द्रोत्पत्ति से विरहित रहता है। भगवन् ! मानुषोत्तर पर्वत के बहिर्वर्ती चन्द्र (सूर्य, ग्रह, नक्षत्र एवं ) तारे रूप ज्योतिष्क देवों का वर्णन पूर्वानुरूप जानना चाहिए। इतना अन्तर है - वे विमानोत्पन्न हैं, किन्तु चारोपपन्न नहीं है । वे चारस्थितिक हैं, गतिरतिक नहीं हैं, गति - समापन्न नहीं हैं।

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