Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चतुर्थ वक्षस्कार]
[२५७
___ गोयमा ! णीले णीलोभासे णीलवन्ते अ इत्थ देवे महिड्डीए जाव ' परिवसइ सव्ववेरुलिआमए आमए णीलवन्ते जाव णिच्चेति।
[१३९] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत नीलवान् नामक वर्षधर पर्वत कहाँ बतलाया गया है ?
गौतम ! महाविदेह क्षेत्र के उत्तर में, रम्यक क्षेत्र के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत नीलवान् नामक वर्षधर पर्वत बतलाया गया है। वह पूर्व-पश्चिम लम्बा और उत्तर-दक्षिण चौड़ा है। जैसा निषध पर्वत का वर्णन है, वैसा ही नीलवान् वर्षधर पर्वत का वर्णन है। इतना अन्तर है-दक्षिण में इसकी जीवा है, उत्तर में धनुपृष्ठभाग है।
उसमें केसरी नामक द्रह है। दक्षिण में उससे शीता महानदी निकलती है। वह उत्तरकुरु में बहती है। आगे यमक पर्वत तथा नीलवान्, उत्तरकुरु, चन्द्र, ऐरावत एवं माल्यवान् द्रह को दो भागों में बाँटती हुई आगे बढ़ती है। उसमें ८४००० नदियाँ मिलती हैं। उनसे आपूर्ण होकर वह भद्रशाल वन में बहती है। जब मन्दर पर्वत दो योजन दूर रहता है, तब वह पूर्व की ओर मुड़ती है, नीचे माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत को विदीर्ण-विभाजित कर मन्दर पर्वत के पूर्व में पूर्वविदेह क्षेत्र को दो भागों में बाँटती हुई आगे जाती है। एक-एक चक्रवर्तिविजय में उसमें अट्ठाईस-अट्ठाईस हजार नदियां मिलती हैं। यों कुल २८००० x १६+ ८४००० = ५३२००० नदियों से आपूर्ण वह नीचे विजयद्वार की जगती को दीर्ण कर पूर्वी लवणसमुद्र में मिल जाती है। बाकी का वर्णन पूर्वानुरूप है।
नारीकान्ता नदी उत्तराभिमुख होती हुई बहती है। उसका वर्णन इसी के सदृश है। इतना अन्तर हैजब गन्धापति वृत्तवैताढ्य पर्वत एक योजन दूर रह जाता है, तब वह वहाँ से पश्चिम की ओर मुड़ जाती है। बाकी का वर्णन पूर्वानुरूप है। उद्गम तथा संगम के समय उसके प्रवाह का विस्तार हरिकान्ता नदी के सदृश होता है।
- भगवन् ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के कितने कूट बतलाये गये हैं ? गौतम ! उनके नौ कूट बतलाये गये हैं
१. सिद्धायतनकूट, २. नीलवत्कूट, ३. पूर्वविदेहकूट, ४. शीताकूट, ५. कीर्तिकूट, ६. नारीकान्ताकूट, अपरविदेहकूट, ८. रम्यककूट तथा ९. उपदर्शनकूट।
ये सब कूट पांय सौ योजन ऊँचे हैं। इनके अधिष्ठातृ देवों की राजधानियां मेरु के उत्तर में हैं। भगवन् ! नीलवान् वर्षधर पर्वत इस नाम से क्यों पुकारा जाता है ?
गौतम ! वहाँ नीलवर्णयुक्त, नील आभावाला परम ऋद्धिशाली नीलवान् नामक देव निवास करता है, नीलवान् वर्षधर पर्वत सर्वथा वैडूर्यरत्नमय-नीलममय है। इसलिए वह नीलवान् कहा जाता है। अथवा उसका यह नाम नित्य है-सदा से चला आता है।
१. देखें सूत्र संख्या १४