Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 379
________________ ३१६ ] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र वण्ण-(वत्थ-) चुण्णवासंवासंति, अप्पेगइआ हिरण्णविहिंभाइंति एवं(सुवण्णविहि, रयणविहिं, वइरविहिं, आभरणविहि, पत्तविहिं, पुप्फविहिं, फलविहिं, बीअविहि, मल्लविहिं, गन्धविहिं, वण्णविहिं,) चुण्णविहिं भाइंति, अप्पेगइया चउव्विहं वज्जं वाएन्ति तं जहा-ततं १, विततं २, घणं ३, झुसिरं ४, अप्पेगइआ चउव्विहं गेअंगायन्ति तं जहा-अंचिअं, दुअं आरभडं, भसोलं, अप्पेगइआ चउव्विहं अभिणेति, तं जहा-दिलृतिअं, पाडिस्सुइअं, सामण्णोवणिवाइअं, लोगमज्झावसाणिअं,अप्पेगइआ बत्तीसइविहं दिव्वं णट्ठविहिं उवदंसेन्ति, अप्पेगइआ उप्पयनिवयं, निवयउप्पयं, संकुचिअपसारिअं(रिआरिअं), भन्तसंभन्तणामं दिव्वंनट्टविहिं उवदंसन्तीति अप्पेगइआ तंडवेंति, अप्पेगइआ लासेन्ति। ___ अप्पेगइआ पीणेन्ति, एवं बुक्कारेन्ति,अप्फोडेन्ति, वग्गन्ति, सीहणायंणदन्ति,अप्पेगइया सव्वाइं करेन्ति,अप्पेगइआ हयहेसिअंएवंहत्थिगुलुगुलाइअं, रहघणघणाइअं,अप्पेगइआ तिण्णिवि, अप्पेगइआ उच्छोलन्ति, अप्पेगइआ पच्छोलन्ति, अप्पेगइआ तिवई छिंदन्ति, पायदद्दरयं करेन्ति, भूमिचवेडे दलयन्ति, अप्पेगइआ महया सद्देणं राति एवं संजोगा विभासिअव्वा, अप्पेगइआ हक्कारेन्ति, एवं पुक्कारेन्ति,थक्कारेन्ति, ओवयंति, उप्पयंति, परिवयंति, जलन्ति, तवंति, पयवंति, गजंति, विज्जुआयंति, वासिंति,अप्पेगइआ देवुक्कलिअंकरेंति एवंदेवकहकहगं करेंति,अप्पेगइआ दुहदुहुगं करेंति, अप्पेगइआ विकिअभूयाई रूवाइं विउव्वित्ता पणच्चंति एवमाइ विभासेज्जा जहा विजयस्स जाव सव्वओ समन्ता आहावेंति परिधावेंतित्ति। [१५४] जब अभिषेकयोग्य सब सामग्री उपस्थापित की जा चुकी, तब देवेन्द्र अच्युत अपने दश हजार सामानिक देवों, तेतीस त्रायस्त्रिंश देवों, चार लोकपालों, तीन परिषदों, सात सेनाओं, सात सेनापतिदेवो, तथा चालीस हजार अंगरक्षक देवों से परिवृत होता हुआ स्वाभाविक एवं विकुर्वित उत्तम कमलों पर रखे हुए, सुगन्धित, उत्तम जल से परिपूर्ण, चन्दन से चर्चित, गलवे में मोती बाँधे हुए, कमलों एवं उत्पलों से ढंके हुए, सुकोमल हथेलियो पर उठाये हुए एक हजार आठ सोने के कलशों (एक हजार आठ चाँदी के कलशों, एक हजार आठ मणिओं के कलशों, एक हजार आठ सोने एवं चाँदी के मिश्रित कलशों, एक हजार आठ स्वर्ण तथा मणियों के मिश्रित कलशों, एक हजार आठ चाँदी और मणियों के मिश्रित कलशों, एक हजार आठ सोने, चाँदी और मणियों के मिश्रित कलशों) एक हजार आठा मृत्तिकामय-मिट्टी के कलशों, (एक हजार आठ चन्दनचर्चित मंगलकलशों) के सब प्रकार के जलों, सब प्रकार की मृत्तिकाओं सब प्रकार के कषाय-कसैले पदार्थों, (सब प्रकार के पुष्पों, सब प्रकार के सुगन्धित पदार्थों, सब प्रकार की मालाओं, ) सब प्रकार की औषधियों एवं सफेद सरसों द्वारा सब प्रकार की ऋद्धि-वैभव के साथ तुमुल वाद्यध्वनिपूर्वक भगवान् तीर्थंकर का अभिषेक करता है। अच्युतेन्द्र द्वारा अभिषेक किये जाते समय अत्यन्त हर्षित एवं परितुष्ट अन्य इन्द्र आदि देव छत्र, चँवर, धूपपान, पुष्प, सुगन्धित पदार्थ, (मालाएँ, चूर्ण-सुगन्धित द्रव्यों का बुरादा,) वज्र, त्रिशूल हाथ में लिये, अंजलि बाँधे खड़े रहते हैं। एतत्सम्बद्ध वर्णन जीवाभिगमसूत्र में आये विजयदेव के अभिषेक के प्रकरण

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