Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सप्तम वक्षस्कार
चन्द्रादिसंख्या
१५९. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे कइ चंदा पभासिंसु, प्रभासंति, पभासिस्संति ? कइ सूरिआ तवइंसु, तवेंति, तविस्संति ? केवइआ णक्खत्ता जोगं जोइंसु, जोअंति जोइस्संति ? केवइआ महग्गहा चारं चारिंसु, चरंति, चरिस्संति ? केवइआओ तारागण-कोडाकोडीओ सोभिंसु, सोभंति, सोभिस्संति ?
___ गोयमा ! दो चंदा पभासिंसु ३, दो सूरिआ तवइंसु ३, छप्पणं णक्खत्ता जोगं जोइंसु ३, छावत्तरं महग्गह-सयं चारं चरिंसु ३।
एगं च सय-सहस्सं, तेत्तीसं खलु भवे सहस्साइं।
णव य सया पण्णासा, तारागणकोडिकोडीणं॥१॥ [१५९] भगवन् ! जम्बूद्वीप में कितने चन्द्रमा उद्योत करते रहे हैं, उद्योत करते हैं एवं उद्योत करते रहेंगे? कितने सूर्य तपते रहे हैं, तपते हैं और तपते रहेंगे? कितने नक्षत्र अन्य नक्षत्रों से योग करते रहे हैं, योग करते हैं तथा करते रहेंगे ? कितने महाग्रह चाल चलते रहे हैं-मण्डल क्षेत्र पर परिभ्रमण करते रहे हैं, परिभ्रमण करते हैं एवं परिभ्रमण करते रहेंगे? कितने कोड़ाकोड़ तारे शोभित होते रहे हैं, शोभित होते हैं और शोभितं होते रहेंगे ?
गौतम ! जम्बूद्वीप में दो चन्द्र उद्योत करते रहे हैं, उद्योत करते है तथा उद्योत करते रहेंगे। दो सूर्य तपते रहे हैं, तपते हैं और तपते रहेंगे। ५६ नक्षत्र अन्य नक्षत्रों के साथ योग करते रहे हैं, योग करते हैं एवं योग करते रहेंगे। १७६ महाग्रह मण्डल क्षेत्र पर परिभ्रमण करते रहे हैं, परिभ्रमण करते हैं तथा परिभ्रमण करते रहेंगे।
गाथार्थ–१३३९५० कोडाकोड तारे शोभित होते रहे हैं, शोभित होते हैं और शोभित होते रहेंगे। सूर्य-मण्डल-संख्या आदि
१६०. कइ णं भंते ! सूरमंडला पण्णत्ता ? गोयमा ! एगे चउरासीए मंडलसए पण्णत्ते इति। जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइअं ओगाहित्ता केवइआ सूरमंडला पण्णत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे असीअंजोअण-सयं ओगाहित्ता एत्थ णं पण्णट्ठी सूरमंडला
पणणत्ता।
लवणे णं भंते ! समुद्दे केवइअं ओगाहित्ता केवइआ सूरमंडला पण्णत्ता ? .