Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 405
________________ [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र गौतम ! वह ५३०४५७. योजन प्रति मुहूर्त गमन करता है । तब यहाँ स्थित मनुष्यों को वह * (सूर्य) ३१९१६३९/ योजन तथा ६० भागों में विभक्त एक योजन के एक भाग के ६१ भागों में से ६० भाग योजनांश की दूरी से दृष्टिगोचर होता है । वहाँ से प्रवेश करता हुआ - जम्बूद्वीप के सम्मुख अग्रसर होता हुआ सूर्य दूसरे अहोरात्र में तृतीय बाह्य मण्डल पर उपसंक्रान्त होकर गति करता है । ३४२ ] भगवन् ! जब सूर्य तृतीय बाह्य मण्डल पर उपसंक्रान्त होकर गति करता है, तब वह प्रतिमुहूर्त कितना क्षेत्र पार करता है - गमन करता है ? ६० गौतम ! वह ५३०४९/.. योजन प्रतिमुहूर्त गमन करता है। तब यहाँ स्थित मनुष्यों को ३२००१४६ / ६ योजन तथा ६० भागों में विभक्त एक योजन के एक भाग के ६१ भागों में से २३ भाग योजनांश की दूरी से वह (सूर्य) दृष्टिगोचर होता है । ६० पूर्वोक्त क्रम से प्रवेश करता हुआ सूर्य पूर्व मण्डल से उत्तर मण्डल पर संक्रमण करता हुआ, प्रतिमण्डल पर मुहूर्त - गति को १८ / योजन कम करता हुआ, कुछ अधिक ८५ योजन पुरुषछायापरिमित अभिवृद्धि करता हुआ सर्वाभ्यन्तर मण्डल को उपसंक्रान्त कर गति करता है। ये दूसरा छह मास है । इस प्रकार दूसरे छह मास का पर्यवसान होता है। यह आदित्य - संवत्सर है । यों आदित्य-संवत्सर का पर्यवसान बतलाया गया है 1 दिन-रात्रि - मान १६७. जया णं भंते ! सूरिए सव्वब्धंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं केमहाल दिवसे केमहालिया राई भवइ ? गोयमा ! तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहण्णिआ दुवालसमुहुत्ता राई भवइ । से णिक्खममाणे सूरिए णवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अब्भंतराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ । जाणं भंते! सूरिए अब्भंतराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं केमहालए दिवसे केमहालिया राई भवइ ? गोयमा ! तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगसट्टिभागमुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राई भवइ दोहि अ एगसट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिअत्ति । सेक्खिमाणे सूरि दोच्चंसि अहोरत्तंसि अब्भंतराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं केमहालाएं दिवसे केमहालिया राई भवइ ? गोयमा ! तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ चउहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणे दुवालसमुहुत्ता राई भवइ चउहिं एगसद्विभागमुहुत्तेहिं अहिअत्ति । एवं खलु एएणं उवाएणं निक्खममाणे सूरिए तयाणंतराओ मंडलाओ तयाणंतरं मंडलं संकममाणे दो दो एगसट्ठिभागमुहुत्तेहिं मंडले दिवसखित्तस्स निव्वुद्धेमाणे २ रयणिखित्तस्स अभिवर्द्धमाणे २ सव्वबाहिरं

Loading...

Page Navigation
1 ... 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482