Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पञ्चम वक्षस्कार।
[३१९
रयणभत्तिचित्तं, कालागुरुपवरकुंदुरुक्कतुरुक्कधूवगंधुत्तमाणुविद्धं च धूमवट्टि विणिम्मुअंतं, वेरुलिअमयं कडुच्छुअंपग्गहित्तु पयएणं धूवं दाऊण जिणवरिंदस्स सत्तट्ठ पयाइं ओसरित्ता दसंगुलिअं अंजलिं करिअ मत्थयंमि पयअ अट्ठसयविसुद्धगन्धजुत्तेहिं, महावित्तेहिं, अपुणरुत्तेहिं, अत्थजुत्तेहिं संथुणइ २ त्ता वामं जाणुं अंचेइ २ त्ता (दाहिणं जाणुं धरणिअलंसि निवाडेइ) करयलपरिग्गहिअंमत्थए अंजलिं कट्ट एवं वयासी-णमोऽत्थुणं ते सिद्ध-बुद्धणीरय-समण-सामाहिअ-समत्त-समजोगि-सल्लगत्तणं-णिब्भय-णीरागदोस-णिम्ममणिस्संग-णीसल्ल-माणमूरण-गुणरयण-सीलसागर-मणंत-मप्पमेयभविअधम्मवरचाउरंतचक्कवट्टी, णमोऽत्थु से अरहओत्ति कट्ट एवं वन्दइ णमंसइ २ त्ता णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे जाव' पज्जुवासइ। एवं जहा अँच्चुअस्स तहा जाव ईसाणस्स भाणिअव्वं, एवं भवणवइवाणमन्तरजोइसिआ य सूरपज्जवासाणा सएणं परिवारेणं पत्तेअं २ अभिसिंचंति।
____तए णं से ईसाणे देविन्दे देवराया पञ्च ईसाणे विउव्वइ २ ता एगे ईसाणे भगवं तित्थयरं करयलसंपुडेणं गिण्हइ २ त्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे, एगे ईसाणे पिट्ठओ आयवत्तं धरेइ, दुवे ईसाणा उभओ पासिं चामरुक्खेवं करेन्ति, एगे ईसाणे पुरओ सूलपाणी चिट्ठइ।
तए णं से सक्के देविन्दे, देवराया आभिओगे देवे सद्दावेइ २ त्ता एसोवि तह चेव अभिसेआणंत्ति देइ तेऽवि तह चेव उवणेन्ति। तए णं से सक्के देविन्दे, देवराया भगवओ तित्थयरस्स चउद्दिसिं चत्तारि धवलवसभे विउव्वेइ। सेए संखदलविमल-निम्मलदधिघणगोखीरफेणरयणि-गरप्पगासे पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। तए णं तेसिंचउण्हं धवलवसभाणं अट्टहिं सिंगेहिंतो अट्ट तोअधाराओणिग्गच्छन्ति, तए णंताओ अट्ट तोअधाराओ उद्धं वेहासं उप्पयन्ति २ त्ता एगओ मिलायन्ति २ त्ता भगवओ तित्थयरस्स मुद्धाणंसि निवयंति। तए णं सक्के देविन्दे, देवराया चउरासीईए सामाणिअसाहस्सीहिं एअस्सवि तहेव-अभिसेओ भाणिअव्वो जाव णमोऽत्थु ते अरहओत्ति कट्ट वन्दइ णमंसइ जाव २ पज्जुवासइ।
[१५५] सपरिवार अच्युतेन्द्र विपुल, वृहत् अभिषेक-सामग्री द्वारा स्वामी का-भगवान् तीर्थंकर का अभिषेक करता है।
अभिषेक कर वह हाथ जोड़ता है, अंजलि बाँधे मस्तक से लगाता है, जय-विजय शब्दों द्वारा भगवान् की वर्धापना करता है, इष्ट-प्रिय वाणी द्वारा जय-जय शब्द उच्चारित करता है। वैसा कर वह रोएँदार, सुकोमल, सुरभित, काषायित-हरीतको, विभीतक, आमलक आदि कसैली वनौषधियों से रंगे हुए अथवा कषाय-लाल या गेरुए रंग के वस्त्र-तौलिये द्वारा भगवान् का शरीर पोंछता है। शरीर पोंछकर वह उनके अंगों पर ताजे गोशीर्ष चन्दन का लेप करता है। वैसा कर नाक से निकलने वाली हवा से भी उड़ने लगें,
१. देखें सूत्र संख्या ६८ २. देखें सूत्र संख्या ६८