Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
३१० ]
[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
एए विमाणाणं इमे जाणविमाणकारी देवा, तं जहापालय १, पुप्फे य २, सोमणसे ३, सिरिवच्छे अ ४, दिआवत्ते ५ । कामगमे ६, पीइगमे ७, मणोरमे ८, विमल ९, सव्वओ भद्दे ९० ॥
सोहम्मगाणं, सणकुमारगाणं, बंभलोअगाणं, महासुक्कयाणं, पाणयगाणं इंदाणं सुघोसा घण्टा, हरिणेगमेसी पायत्ताणीआहिवई, उत्तरिल्ला णिज्जाणभूमी, दाहिणपुरत्थिमिल्ले
रइकरगपव्वए ।
ईसाणगाणं, माहिंदलंतगसहस्सारअच्चुअगाण य इंदाण महाघोसा घण्टा, लहुपरक्कमो पायत्ताणीआहिवई, दक्खिणिल्ले णिज्जाणमग्गे, उत्तरपुरत्थिमिल्ले रइकरगपव्वए, परिसा णं जहा जीवाभिगमे । आयरक्खा सामाणिअचउग्गणा सव्वेसिं, जाणविमाणा सव्वेसिं जोअणसयसहस्सवित्थिण्णा, उच्चत्तेणं सविमाणप्पमाणा, महिंदज्झया सव्वेसिं जोअणसहस्सिआ, सक्कवज्जा मन्दरे समोसरांति (वंदंति, णमंसंति, ) पज्जुवासंति त्ति ।
[१५१] उस काल, उस समय हाथ में त्रिशूल लिये, वृषभ पर सवार, सुरेन्द्र, उत्तरार्ध लोकाधिपति, अट्ठाईस लाख विमानों का स्वामी, आकाश की ज्यों निर्मल वस्त्र धारण किये देवेन्द्र, देवराज ईशान मन्दर पर्वत पर समवसृत होता है - आता है । उसका अन्य सारा वर्णन सौधर्मेन्द्र शक्र के सदृश है । अन्तर इतना है— उनकी घण्टा का नाम महाघोषा है। उसके पदातिसेनाधिपति का नाम लघुपराक्रम है, विमानकारी देव का नाम पुष्पक है। उसका नियोग - निर्गमन मार्ग दक्षिणवर्ती है, उत्तरपूर्ववर्ती रतिकर पर्वत है।
वह भगवान् तीर्थंकर को वन्दर करता है, नमस्कार करता है, उनकी पर्युपासना करता है । अच्युतेन्द्र पर्यन्त बाकी के इन्द्र भी इसी प्रकार आते हैं, उन सबका वर्णन पूर्वानुरूप है । इतना अन्तर
सौधर्मेन्द्र शक्र के चौरासी हजार ईशानेन्द्र के अस्सी हजार, सनत्कुमारेन्द्र के बहत्तर हजार, माहेन्द्र के सत्तर हजार, ब्रह्मेन्द्र के साठ हजार, लान्तकेन्द्र के पचास हजार, शुक्रेन्द्र के चालीस हजार, सहस्रारेन्द्र के तीस हजार, आनत-प्राणत - कल्प - द्विकेन्द्र के इन दो कल्पों के इन्द्र के बीस हजार तथा आरण-अच्युतकल्प - द्विकेन्द्र के- इन दो कल्पों के इन्द्र के दश हजार सामानिक देव हैं।
सौधर्मेन्द्र के बत्तीस लाख, ईशानेन्द्र के अट्ठाईस लाख, सनत्कुमारेन्द्र के बारह लाख, . ब्रह्मलोकेन्द्र के चार लाख, लान्तकेन्द्र के पचास हजार, शुक्रेन्द्र के चालीस हजार, सहस्रारेन्द्र के छह हजार, आनतप्राणत- इन दो कल्पों के चार सौ तथा आरण - अच्युत - इन दो कल्पों के इन्द्र के तीन सौ विमान होते हैं ।
पालक, पुष्पक, सौमनस, श्रीवत्स, नन्दावर्त, कामगम, प्रीतिगम, मनोरम, विमल तथा सर्वतोभद्र ये यान- विमानों की विकुर्वणा करने वाले देवों के अनुक्रम से नाम हैं।
सौधर्मेन्द्र, सनत्कुमारेन्द्र, ब्रह्मलोकेन्द्र, महाशुक्रेन्द्र तथा प्राणतेन्द्र की सुघोषा घण्टा, हरिनिगमेषी पदाति—सेनाधिपति, उत्तरवर्ती निर्याण मार्ग, दक्षिण-पूर्वर्ती रतिकर पर्वत है। इन चार बातों में इनकी पारस्परिक