Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
पञ्चम वक्षस्कार]
[२८९
फिर वे ऊर्ध्वलोकवास्तव्या आठ दिक्कुमारिकाएँ पुष्पों के बादलों की विकुर्वणा करती हैं। (जैसे कोई क्रिया-निष्णात माली का लड़का एक बड़ी पुष्प-छाधिका-फूलों की बड़ी टोकरी, पुष्प-पटलकफूल रखने का पात्र-विशेष या पुष्प-चंगेरी-फूलों की डलिया लेकर राजमहल के आंगन आदि में कचग्रहरति-कलह में प्रेमी द्वारा मृदुतापूर्वक पकड़े जाते प्रेयसी के केशों की ज्यों पंचरंगे फूलों को पकड़-पकड़ कर-ले-लेकर सहज रूप में उन्हें छोड़ता जाता है, बिखेरता जाता है, पुष्पोपचार से, फूलों की सजा से उसे कलित-सुन्दर बना देता है,) ऊर्ध्वलोकवास्तव्या आठ दिक्कुमारिकाओं द्वारा विकुर्वित फूलों के बादल जोर-जोर से गरजते हैं, उसी प्रकार, जल में उत्पन्न होने वाले कमल आदि, भूमि पर उत्पन्न होने वाले बेला, गुलाब आदि देदीप्यमान, पंचरंगे, वृत्तसहित फूलों की इतनी विपुल वृष्टि करते है कि उनका, घुटने-घुटने तक ऊँचा ढेर हो जाता है।
फिर वे काले अगर, उत्तम कुन्दरुक, लोबान तथा धूप की गमगमाती महक से वहाँ के वातावरण को बड़ा मनोज्ञ, उत्कृष्ट-सुरभिमय बना देती हैं। सुगंधित धुएँ की प्रचुरता से वहाँ गोल-गोल धूममय छल्ले से बनने लगते हैं। यों वे दिक्कुमारिकाएँ उस भूभाग को सुरवर-देवोत्तम देवराज इन्द्र के अभिगमन योग्य बना देती हैं। ऐसा कर वे भगवन् तीर्थंकर एवं उनकी माँ के पास आती हैं। वहाँ आकर (भगवान् तीर्थंकर तथा उनकी माँ से न अधिक दूर, न अधिक समीप) आगान, परिगान करती हैं। रुचकवासिनी दिक्कुमारिकाओं द्वारा उत्सव
१४७. तेणं कालेणं तेणं समएणं पुरथिमरु अगवत्थव्वओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरिआओ सएहिं २ कूडेहिं तहेव जाव ' विहरंति, तं जहा
णंदुत्तरा य १, णन्दा २, आणन्दा ३, णंदिवद्धणा ४।।
विजया य ५, वेजयन्ती ६, जयन्ती ७, अपराजिआ ८॥१॥ सेसं तं चेव (सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी-णमोत्थु ते रयणकुच्छिधारिए ! जगप्पईववाईए ! सव्वजगमंगलस्स, चक्खुणो अ मुत्तस्स, सव्वजगजीववच्छलस्स, हिअकारगमग्गदेसियवागिद्धिविभुप्पभुस्स, जिणस्स, णाणिस्स, नायगस्स, बुहस्स, बोहगस्स, सव्वलोगनाहस्स, निम्ममस्स, पवरकुलसमुब्भवस्स जाईए खत्तिअस्स जंसि लोगुत्तमस्स जणणी ! धण्णासि तं पुण्णासि कयथासि अम्हे णं देवाणुप्पिए ! पुरत्थिमरुअगवत्थव्वाओ अट्ट दिसाकुमारीमहत्तरिआओ भगवओ तित्थगरस्स जम्मणमहिमं करिस्सामो) तुब्भाहिं ण भाइअव्वंति कट्ट भगवओ तित्थगरस्स तित्थयरमायाए अ पुरत्थिमेणं आयंसहत्थगयाओ आगायमणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठन्ति।
तेणं कालेणं तेणं समएणं दाहिणरुअगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहत्तरिआओ तहेव जाव २ विहरंति, तं जहा
१. देखें सूत्र संख्या १४६
२. देखें सूत्र संख्या १४६