Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
करती हुई वह वेगपूर्वक (मोतियों से बने हार के आकार में) प्रपात में गिरती है। उस समय उसका प्रवाह ऊपर से नीचे तक कुछ अधिक चार सौ योजन का होता है। शेष वर्णन जैसा हरिकान्ता महानदी का है, वैसा ही इसका समझना चाहिए। इसकी जिबिका, कुण्ड, द्वीप एवं भवन का वर्णन, प्रमाण उसी जैसा है।
नीचे जम्बूद्वीप की जगती को विदीर्ण कर वह आगे बढ़ती है।५६००० नदियों से आपूर्ण वह महानदी पूर्वी लवणसमुद्र में मिल जाती है। उसके प्रवाह-उद्गम-स्थान, मुख-मूल-समुद्र से संगम तथा उद्वेधगहराई का वैसा ही प्रमाण है, जैसा हरिकान्ता महानदी का है। हरिकान्ता महानदी की ज्यों वह पद्मवरवेदिका तथा वनखण्ड से घिरी हुई है।
तिगिंछद्रह के उत्तरी तोरण से शीतोदा नामक महानदी निकलती है। वह उत्तर में उस पर्वत पर ७४२११/ योजन बहती है। घड़े के मुंह से निकलते जल की ज्यों जोर से शब्द करती हुई वेगपूर्वक वह प्रपात में गिरती है। तब ऊपर से नीचे तक उसका प्रवाह कुछ अधिक ४०० योजन होता है। शोतोदा महानदी जहाँ से गिरती है, वहाँ एक विशाल जिबिका-प्रणालिका है। वह चार योजन लम्बी, पचास योजन चौड़ी तथा एक योजन मोटी है। उसका आकार मगरमच्छ के खुले हुए मुख के आकार जैसा है। वह सम्पूर्णतः वज्ररत्नमय है, स्वच्छ है।
शीतोदा महानदी जिस कुण्ड में गिरती है, उसका नाम शीतोदाप्रपातकुण्ड है। वह विशाल है। उसकी लम्बाई-चौड़ाई ४८० योजन है। उसकी परिधि कुछ कम १५१८ योजन है। वह निर्मल है। तोरणपर्यन्त उस कुण्ड का वर्णन पूर्ववत् है।
___ शीतोदाप्रपातकुण्ड के बीचोंबीच शीतोदाद्वीप नामक विशाल द्वीप है। उसकी लम्बाई-चौड़ाई ६४ योजन है, परिधि २०२ योजन है। वह जल के ऊपर दो कोस ऊँचा उठा है। वह सर्ववज्ररत्नमय है, स्वच्छ है। पद्मवरवेदिका, वनखण्ड भूमिभाग, भवन शयनीय आदि बाकी का वर्णन पूर्वानुरूप है।
उस शीतोदाप्रपातकुण्ड के उत्तरी तोरण से शीतोदा महानदी आगे निकलती है। देवकुरुक्षेत्र में आगे बढ़ती है। चित्र-विचित्र-वैविध्यमय, कूटों, पर्वतों, निषध, देवकुरु, सूर, सुलस एवं विद्युत्प्रभ नामक द्रहों को विभक्त करती हुई जाती है। उस बीच उसमें ८४००० नदियाँ आ मिलती हैं। वह भद्रशाल वन की ओर
आगे जाती है। जब मन्दर पर्वत दो योजन दूर रह जाता है, तब वह पश्चिम की ओर मुड़ती है। नीचे विद्युत्प्रभ नामक वक्षस्कार पर्वत को भेद कर मन्दर पर्वत के पश्चिम में अपर विदेहक्षेत्र-पश्चिम विदेहक्षेत्र को दो भागों में विभक्त करती हुई बहती है। उस बीच उसमें १६ चक्रवर्ती विजयों में से एक-एक से अट्ठाईसअट्ठाईस हजार नदियाँ आ मिलती हैं। इस प्रकार ४४८००० ये तथा ८४००० पहले की-कुल ५३२००० नदियों से आपूर्ण वह शीतोदा महानदी नीचे जम्बूद्वीप के पश्चिम दिग्वर्ती जयन्त द्वार की जगती को विदीर्ण कर पश्चिमी लवणसमुद्र में मिल जाती है।
___ शीतोदा महानदी अपने उद्गम-स्थान में पचास योजन चौड़ी है। वहाँ वह एक योजन गहरी है। तत्पश्चात् वह मात्रा में-प्रमाण में क्रमशः बढ़ती-बढ़ती जब समुद्र में मिलती है, तब वह ५०० योजन चौड़ी