Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चतुर्थ वक्षस्कार]
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उत्तरदिग्वर्ती भवन के पूर्व में, उत्तर-पूर्व-ईशानकोणवर्ती उत्तम प्रासाद के पश्चिम में वज्रकूट पर बलाहका नामक देवी निवास करती है। उसकी राजधानी है उत्तर में है।
भगवन् ! नन्दनवन में बलकूट नामक कूट कहाँ बतलाया गया है ?
गौतम ! मन्दर पर्वत के उत्तर-पूर्व में ईशानकोण में नन्दनवन के अन्तर्गत बलकूट नामक कूट बतलाया गया है। उसका, उसकी राजधानी का प्रमाण, विस्तार हरिस्सहकूट एवं उसकी राजधानी के सदृश है। इतना अन्तर है-उसका अधिष्ठायक बल नामक देव है। उसकी राजधानी उत्तर पूर्व में ईशानकोण में है। सौमनसवन
१३४. कहि णं भंते ! मन्दरए पव्वए सोमणसवणे णामं वणे पण्णत्ते ?
गोयमा ! णन्दणवणस्स बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ अद्धतेवढेि जोअणसहस्साई उद्धं उप्पइत्ता एत्थ णं मन्दरे पव्वए सोमणसवणे णामं वणे पण्णत्ते। पञ्चजोयणसयाई चक्क-वालविक्खम्भेणं, वट्टे, वलयाकारसंठाणसंठिए, जे णं मन्दरं पव्वयं सव्वओ समन्ता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठइ। चत्तारि जोअणसहस्साइं दुण्णि य बावत्तरे जोअणसए अट्ठ य इक्कारसभाए जोअणस्स बाहिं गिरिविक्खम्भेणं, तेरस जोअणसहस्साई पञ्च य एक्कारे जोअणसए छच्च इक्कारसभाए जोअणस्स बाहिं गिरिपरिरएणं, तिणि जोअणसहस्साई दुण्णि अ बावत्तरे जोअणसए अट्ठ य इक्कारसभाए जोयणस्स अंतो गिरिविक्खम्भेणं, दस जोअणसहस्साई तिण्णि अ अउणापण्णे जोअणसए तिण्णि अ इक्कारसभाए जोअणस्स अंतो गिरिपरिरएणंति। से णं एगाए पउमवरवेइआए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समन्ता संपरिक्खित्ते वण्णओ, किण्हे किण्होभासे जाव १ आसयन्ति। एवं कूडवजा सच्चेव णन्दणवणवत्तव्वया भाणियव्वा, तं चेव ओगाहिऊण जाव पासायवडेंसगा सक्कीसाणाणंति।
[१३४] भगवन् ! मन्दर पर्वत पर सौमनसवन नामक वन कहाँ बतलाया गया है ? . - गौतम ! नन्दनवन.के बहुत समतल एवं रमणीय भूमिभाग से ६२५०० योजन ऊपर जाने पर मन्दर पर्वत पर सौमनस नामक वन आता है। वह चक्रवाल-विष्कम्भ की दृष्टि से पाँच सौ योजन विस्तीर्ण है, गोल है, वलय के आकार का है। वह मन्दर पर्वत को चारों ओर से परिवेष्टित किए हुए है। वह पर्वत से बाहर ४२७२/. योजन विस्तीर्ण है। पर्वत से बाहर उसकी परिधि १३५११६... योजन है। वह पर्वत के भीतरी भाग में ३२७२/ योजन विस्तीर्ण है। पर्वत के भीतरी भाग से संलग्न उसकी परिधि १०३४९/.. योजन है । वह एक पद्मवरवेदिका तथा एक वनखण्ड द्वारा चारों ओर से घिरा हुआ है। विस्तृत वर्णन पूर्ववत्
देखें, सूत्र संख्या ६