Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
चतुर्थ वक्षस्कार ]
णामं सिला पण्णत्ता । पाईणपडीणायया, उदीणदाहिणवित्थिणा, सव्वतवणिज्जमई अच्छा जाव' मज्झदेसभाए सीहासणं, तत्थ णं बहूहिं भवणवइ० जाव' देवहिं देवीहि अ एरावयगा तित्थयरा अहिसिच्चन्ति ।
[ २७३
[१३६] भगवन् ! पण्डकवन में कितनी अभिषेक शिलाएँ बतलाई गई हैं ?
गौतम ! वहाँ चार अभिषेक शिलाएँ बतलाई गई हैं - १. पाण्डुशिला, २. पाण्डुकम्बलशिला, ३. रक्तशिला तथा ४. रक्तकम्बलशिला ।
भगवन् ! पण्डकवन में पाण्डुशिला नामक शिला कहाँ बतलाई गई है ?
गौतम ! मन्दर पर्वत की चूलिका के पूर्व में पण्डकवन के पूर्वी छोर पर पाण्डुशिला नामक शिला बतलाई गई है। वह उत्तर - दक्षिण लम्बी तथा पूर्व-पश्चिम चौड़ी है। उसका आकार अर्ध चन्द्र के आकार जैसा है। वह ५०० योजन लम्बी, २५० योजन चौड़ी तथा ४ योजन मोटी है। वह सर्वथा स्वर्णमय है, स्वच्छ है, पद्मवरवेदिका तथा वनखण्ड द्वारा चारों ओर से संपरिवृत है । विस्तृत वर्णन पूर्वानुरूप है ।
उस पाण्डुशिला के चारों ओर चारों दिशाओं में तीन-तीन सीढ़ियाँ बनी हैं। तोरणपर्यन्त उनका वर्णन पूर्ववत् है । उस पाण्डुशिला पर बहुत समतल एवं सुन्दर भूमिभाग बतलाया गया है। उस पर ( जहाँ-तहाँ बहुत से ) देव आश्रय लेते हैं । उस बहुत समतल, रमणीय भूमिभाग के बीच में उत्तर तथा दक्षिण में दो सिंहासन बतलाये गये हैं । वे ५०० धनुष लम्बे-चौड़े और २५० धनुष ऊँचे हैं। विजयदूष्यवर्जित - विजय नामक वस्त्र के अतिरिक्त उसका सिंहासन पर्यन्त वर्णन पूर्ववत् है ।
वहाँ जो उत्तर दिग्वर्ती सिंहासन है, वहाँ बहुत से भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक देव - देवियां कच्छ आदि विजयों में उत्पन्न तीर्थंकरों का अभिषेक करते हैं ।
वहाँ जो दक्षिण दिग्वर्ती सिंहासन है, वहाँ बहुत से भवनपति, (वानव्यन्तर, ज्योतिष्क) एवं वैमानिक देव - देवियां वत्स आदि विजयों उत्पन्न तीर्थंकरों का अभिषेक करते हैं ।
भगवन् ! पण्डकवन में पाण्डुकम्बलशिला नामक शिला कहाँ बतलाई गई है ?
गौतम ! मन्दर पर्वत की चूलिका के दक्षिण में, पण्डकवन के दक्षिणी छोर पर पाण्डुकम्बलशिला नामक शिला बताई गई है। वह पूर्व-पश्चिम लम्बी तथा उत्तर-दक्षिण चौड़ी है। उसका प्रमाण, विस्तार पूर्ववत् है ।
उसके बहुत समतल एवं रमणीय भूमिभाग के बीचोंबीच एक विशाल सिंहासन बतलाया गया है। उसका वर्णन पूर्ववत् है । वहाँ भवनपति, (वानव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक) देव-देवियों द्वारा भरतक्षेत्रोत्पन्न तीर्थंकरों का अभिषेक किया जाता है ।
भगवन् ! पण्डकवन में रक्तशिला नामक शिला कहाँ बतलाई गई है ?
गौतम ! मन्दर पर्वत की चूलिका के पश्चिम में, पण्डकवन के परिश्च छोर पर रक्तशाला, नामक