Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
जोअणाई आयामविक्खम्भेणं, जोअणं बाहल्लेणं। तासि णं मणिपेढिआणं उप्पिं माणवए चेइअखम्भे महिंदज्झयप्पमाणे उवरि छक्कोसे ओगाहित्ता हेट्ठा छक्कोसे वज्जित्ता जिणसकहाओ पण्णत्ताओत्ति। माणवगस्स पुव्वेणं सीहासणा सपरिवारा, पच्चत्थिमेणं सयणिज्जवण्णओ। सयणिज्जाणं उत्तरपुरस्थिमे दिसिभाए,खुड्डगमहिंदज्झया, मणिपेढिआविहूणा महिंदज्झयप्पमाणा। तेसिं अवरेणं चोप्फाला पहरणकोसा। तत्थ णं बहवे फलिहरयणपामुक्खा (बहवे पहरणरयणा सन्निक्खित्ता) चिट्ठति।सुहम्माणं उप्पिं अट्ठमंगलगा।तासिणं उत्तरपुरथिमेणं सिद्धाययणा, एस चेव जिणघराणवि गमोत्ति। णवरं इमं णाणत्तं-एतेसि णं बहुमझदेसभाए पत्तेअं २ मणिपेढिआओ। दो जोअणाई आयामविक्खम्भेणं, जोअणं बाहल्लेणं। तासिं उप्पिं पत्तेअं २ देवच्छंदया पण्णत्ता।दो जोअणाई आयामविक्खम्भेणं, साइरेगाइं दो जोअणाई उद्धं उच्चत्तेणं, सव्वरयणामए। जिणपडिमा वण्णओ जाव धूवकडुच्छगा, एवं अवसेसाणवि सभाणं जाव उववायसभाए, सयणिज्जं हरओ अ।
अभिसेअसभाए बहु आभिसेक्के भंडे, अलंकारिअसभाए बहु अलंकारिअभंडे चिट्ठइ, ववसायसभासु पुत्थयरयणा,णंदा पुक्खरिणीओ, बलिपेढा, दो जोअणाई आयामविक्खम्भेणं, जोअणं बाहल्लेणं जावत्ति
उववाओ संकप्पो, अभिसेअबिहूसणा य ववसाओ। अच्चणिअसुधम्मगमो, जहा य परिवारणा इद्धी॥१॥ जावइयंमि पमाणंमि, हुंति जमगाओ णीलवंताओ।
तावइअमन्तरं खलु, जमगदहाणं दहाणं च ॥२॥ [१०५] भगवन् ! उत्तरकुरु में यमक नामक दो पर्वत कहाँ बतलाये गये हैं ?
गौतम ! नीलवान् वर्षधरपर्वत के दक्षिण दिशा के अन्तिम कोने से ८३४/ योजन के अन्तराल पर शीतोदा नदी के दोनों-पूर्वी, पश्चिमी तट पर यमक संज्ञक दो पर्वत बतलाये गये हैं। वे १००० योजन ऊँचे, २५० योजन जमीन में गहरे, मूल में १००० योजन, मध्य में ७५० योजन तथा ऊपर ५०० योजन लम्बेचौड़े हैं। उनकी परिधि मूल में कुछ अधिक ३१६२ योजन, मध्य में कुछ अधिक २३७२ योजन एवं ऊपर कुछ अधिक १५८१ योजन है। वे मूल में विस्तीर्ण-चौड़े, मध्य में संक्षिप्त-संकड़े और ऊपर-चोटी पर तनुक पतले हैं। वे यमकसंस्थानसंस्थित हैं-एक साथ उत्पन्न हुए दो भाइयों के आकार के सदृश अथवा यमक नामक पक्षियों के आकार के समान हैं। वे सर्वथा स्वर्णमय, स्वच्छ एवं सुकोमल हैं। उनमें से प्रत्येक एक-एक पद्मवरवेदिका द्वारा तथा एक-एक वन-खण्ड द्वारा घिरा हुआ है। वे पद्मवरवेदिकाएँ दो-दो कोश ऊँची हैं। पाँच-पाँच सौ धनुष चौड़ी हैं। पद्मवरवेदिकाओं तथा वन-खण्डों का वर्णन पूर्ववत् है।
उन यमक नामक पर्वतों पर बहुत समतल एवं रमणीक भूमिभाग है। उस बहुत समतल, सुन्दर भूमिभाग के बीचोंबीच दो उत्तम प्रासाद हैं। वे प्रासाद ६२२/ योजन ऊँचे हैं। ३१ योजन १ कोश लम्बेचौड़े हैं। सम्बद्ध सामग्री युक्त सिंहासन पर्यन्त प्रासाद का वर्णन पूर्ववत् है। इन यमक देवों के १६०००