Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
२४० ]
[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
पश्चिमी किनारे से माल्यवान् नामक पश्चिमी वक्षस्कार पर्वत का स्पर्श करता है, वह भरत क्षेत्रवर्ती वैताढ्य पर्वत के सदृश है। अवक्रक्षेत्रवर्ती होने के कारण उसमें बाहएँ, जीवा तथा धनुपृष्ठ-इन्हें न लिया जाएनहीं कहना चाहिए। कच्छादि विजय जितने चौड़े हैं, वह उतना लम्बा है। वह चौड़ाई, ऊँचाई एवं गहराई में भरतक्षेत्रुवर्ती वैताढ्य पर्वत के समान है। विद्याधरों तथा आभियोग्य देवों की श्रेणियाँ भी उसी की ज्यों हैं। इतना अन्तर है-इसकी दक्षिणी श्रेणी में ५५ तथा उत्तरी श्रेणी में ५५ विद्याधर-नगरावास कहे गये हैं। आभियोग्य श्रेण्यन्तर्गत, शीता महानदी के उत्तर में जो श्रेणियाँ हैं, वे ईशानदेव-द्वितीय कल्पेन्द्र की हैं, बाकी की श्रेणियाँ शक्र-प्रथम कल्पेन्द्र की हैं।
वहाँ कूट-पर्वत शिखर इस प्रकार है-१.सिद्धायतनकूट, २. दक्षिणकच्छार्धकूट, ३.खण्डप्रपातगुहाकूट, ४. माणिभद्रकूट, ५. वैताढ्यकूट, ६. पूर्णभद्रकूट, ७. तमिस्रगुहाकूट, ८. उत्तरार्धकच्छकूट, ९. वैश्रमणकूट।
भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में उत्तरार्ध कच्छ नामक विजय कहाँ बतलाया गया
गौतम ! वैताढ्य पर्वत के उत्तर में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में तथा चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत उत्तरार्धकच्छविजय नामक विजय बतलाया गया है। अवशेष वर्णन पूर्ववत् है।
भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में उत्तरार्धकच्छविजय में सिन्धुकुण्ड नामक कुण्ड कहाँ बतलाया गया है ?
गौतम ! माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में, ऋषभकूट के पश्चिम में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिणी पर्वत के दक्षिणी नितम्ब में-मेखलारूप मध्यभाग में-ढलान में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में उत्तरार्धकच्छविजय में सिन्धुकुण्ड नामक कुण्ड बतलाया गया है। वह साठ योजन लम्बा-चौड़ा है। भवन, राजधानी आदि सारा वर्णन भरत क्षेत्रवर्ती सिन्धुकुण्ड के सदृश है।
उस सिन्धुकुण्ड के दक्षिणी तोरण से सिन्धु महानदी निकलती है। उत्तरार्ध कच्छ विजय में बहती है। उसमें वहाँ ७००० नदियाँ मिलती हैं। वह उनसे आपूर्ण होकर नीचे तिमिस्रगुहा से होती हुई वैताढ्य पर्वत को दीर्ण कर-चीर कर दक्षिणार्ध कच्छ विजय में जाती है। वहाँ १४००० नदियों से युक्त होकर वह दक्षिण में शीता महानदी में मिल जाती है। सिन्धुमहानदी अपने उद्गम तथा संगम पर प्रवाह-विस्तार में भरत क्षेत्रवर्ती सिन्धु महानदी के सदृश है । वह दो वनखण्डों द्वारा घिरी है-यहाँ तक का सारा वर्णन पूर्ववत्
भगवन् ! उत्तरार्ध कच्छ विजय में ऋषभकूट नामक पर्वत कहाँ बतलाया गया है ?
गौतम ! सिन्धुकूट के पूर्व में, गंगाकूट के पश्चिम में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिणी ढलान में, उत्तरार्ध कच्छ विजय में ऋषभकूट नाम पर्वत बतलाया गया है। वह आठ योजन ऊँचा है। उसका प्रमाण, विस्तार, राजधानी पर्यन्त वर्णन पूर्ववत् है। इतना अन्तर है-उसकी राजधानी उत्तर में है।