Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
राजा भरत विनीता राजधानी के बीच में निकला । निकल कर जहाँ विनीता राजधानी के उत्तर-पूर्व दिशाभाग में - ईशान कोण में अभिषेकमण्डप था, वहाँ आया । वहाँ आकर अभिषेकमण्डप के द्वार पर आभिषेक्य हस्तिरत्न को ठहराया। ठहराकर वह हस्तिरत्न से नीचे उतरा। नीचे उतर कर स्त्रीरत्न - परम सुन्दर सुभद्रा, बत्तीस हजार ऋतुकल्याणिकाओं बत्तीस हजार जनपद कल्याणिकाओंबत्तीस हजार नाटकों-नाटक-मंडलियों से संपरिवृतघिरा हुआ राजा भरत अभिषेकमण्डप में प्रविष्ट हुआ । प्रविष्ट होकर जहाँ अभिषेकपीठ था, वहाँ आया । वहाँ आकर उसने अभिषेकपीठ की प्रदक्षिणा की। प्रदक्षिणा कर वह पूर्व की ओर स्थित तीन सीढ़ियों से होता हुआ जहाँ सिंहासन था, वहाँ आया वहाँ आकर पूर्व की ओर मुँह करके सिंहासन पर बैठा ।
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राजा भरत के अनुगत बत्तीस हजार प्रमुख राजा, जहाँ अभिषेकमण्डप था, वहाँ आये । वहाँ आकर उन्होंने अभिषेकमण्डप में प्रवेश किया। प्रवेश कर अभिषेकपीठ की प्रदक्षिणा की, उसके उत्तरवर्ती त्रिसोपानमार्ग से, जहाँ राजा भरत था, वहाँ आये । वहाँ आकर उन्होंने हाथ जोड़े, अंजलि बाँधे राजा भरत को जय-विजय शब्दों द्वारा वर्धापित किया । वर्धापित कर राजा भरत के न अधिक समीप, न अधिक दूर थीड़ी ही दूरी पर शुश्रूषा करते हुए राजा का वचन सुनने की इच्छा रखते हुए, प्रणाम करते हुए, विनयपूर्वक सामने हाथ जोड़े हुए, राजा की पर्युपासना करते हुए यथास्थान बैठ गये ।
तदनन्तर राजा भरत का सेनापतिरत्न, (गाथापतिरत्न, वर्धकिरत्न, पुरोहितरत्न, तीन सौ साठ सूपकार, अठारह श्रेणि-प्रश्रेणि जन तथा अन्य बहुत से माण्डलिक राजा, ऐश्वर्यशाली, प्रभावशील पुरुष, राजसम्मानित नागरिक, ) सार्थवाह आदि वहाँ आये ।
उनके आने का वर्णन पूर्ववत् संग्राह्य है केवल इतना अन्तर है कि वे दक्षिण की ओर के त्रिसोपानमार्ग से अभिषेकपीठ पर गये । (राजा को प्रणाम किया, विनयपूर्वक सामने हाथ जोड़े हुए) राजा की पर्युपासना करने लगे - राजा की सेवा में उपस्थित हुए ।
तत्पश्चात् राजा भरत ने आभियोगिक देवों का आह्वान किया । आह्वान कर उनसे कहा- देवानुप्रियो ! मेरे लिए महार्थ - जिसमें मणि, स्वर्ण, रत्न आदि का उपयोग हो, महार्घ - जिसमें बहुत बड़ा पूजा - सत्कार हो-बहूमूल्य वस्तुओं का उपयोग हो, महार्ह - जिसके अन्तर्गत गाजों -बाजों सहित बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाए, ऐसे महाराज्याभिषेक का प्रबन्ध करो - व्यवस्था करो ।
राजा भरत द्वारा यों कहे जाने पर वे आभियोगिक देव हर्षित एवं परितुष्ट हुए। वे उत्तर-पूर्व दिशाभाग में-ईशान कोण में गये। वहाँ जाकर वैक्रिय समुद्घात द्वारा उन्होंने आत्मप्रदेशों को बाहर निकाला ।
जम्बूद्वीप के विजयद्वार के अधिष्ठाता विजयदेव के प्रकरण में जो वर्णन आया है, वह यहाँ संग्राह्य
है ।
वे देव पंडकवन में एकत्र हुए, मिले। मिलकर जहाँ दक्षिणार्थ भरतक्षेत्र था, जहाँ विनीता राजधानी थी, वहाँ आये। आकर विनीता राजधानी की प्रदक्षिणा की, जहाँ अभिषेकमण्डप था, जहाँ राजा भरत था, वहाँ आये। आकर महार्थ, महार्घ तथा महार्ह महाराज्याभिषेक के लिए अपेक्षित समस्त सामग्री राजा के