Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चतुर्थ वक्षस्कार]
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गौतम ! इस कारण वह इस नाम से पुकारा जाता है। अथवा गौतम ! महापद्मद्रह नाम शाश्वत बतलाया गया है जो न कभी नष्ट हुआ, न कभी नष्ट होगा।
उस महापद्मद्रह के दक्षिणी तोरण से रोहिता नामक महानदी निकलती है। वह हिमवान् पर्वत पर दक्षिणाभिमुख होती हुई १६०५५/.. योजन बहती है। घड़े के मुँह से निकलते हुए जल की ज्यों जोर से शब्द करती हुई वेगपूर्वक मोतियों से निर्मित हार के-से आकार में वह प्रपात में गिरती है। तब उसका प्रवाह पर्वत-शिखर से नीचे प्रपात तक कुछ अधिक २०० योजन होता है। रोहिता महानदी जहाँ गिरती है, वहाँ एक विशाल जिबिका-प्रणालिका बतलाई गई है। उसका आयाम-लम्बाई एक योजन और विस्तारचौड़ाई १२१/ योजन है। उसकी मोटाई एक कोश है। उसका आकार मगरमच्छ के खुले मुँह के आकार जैसा है। वह सर्वथा स्वर्णमय है, स्वच्छ है।
रोहिता महानदी जहाँ गिरती है, उस प्रपात का नाम रोहिताप्रपात कुण्ड है। वह १२० योजन लम्बाचौड़ा है। उसकी परिधि कुछ कम तीन सौ अस्सी योजन है। वह दश योजन गहरा है, स्वच्छ एवं सुकोमल चिकना है। उसका पेंदा हीरों से बना है। वह गोलाकार है। उसका तट समतल है। उससे सम्बद्ध तोरण पर्यन्त समग्र वर्णन पूर्ववत् है।
रोहितप्रपातकुण्ड के बीचोंबीच रोहित नामक एक विशाल द्वीप है। वह १६ योजन लम्बा-चौड़ा है। उसकी परिधि कुछ अधिक ५० योजन है। वह जल से दो कोश ऊपर ऊँचा उठा हुआ है। वह संपूर्णतः हीरकमय है, उज्ज्वल है चमकीला है। वह चारों ओर एक पद्मवरवेदिका द्वारा तथा एक वनखण्ड द्वारा घिरा हुआ है। रोहितद्वीप पर बहुत समतल तथा रमणीय भूमिभाग है। उस भूमिभाग के ठीक बीच में एक विशाल भवन है। वह एक कोस लम्बा है। बाकी का वर्णन, प्रमाण आदि पूर्ववत् कथनीय है।
उस रोहितप्रपातकुण्ड के दक्षिणी तोरण से रोहिता महानदी निकलती है। वह हैमवत क्षेत्र की ओर आगे बढ़ती है। शब्दापाती वृत्तवैताढ्यपर्वत जब आधा योजन दूर रह जाता है, तब वह पूर्व की ओर मुड़ती है और हैमवत क्षेत्र को दो भागों में बाँटती हुई आगे बढ़ती है। उसमें २८००० नदियाँ मिलती हैं। वह उनसे आपूर्ण होकर नीचे जम्बूद्वीप की जगती को चीरती हुई भेदती हुई पूर्वी लवणसमुद्र में मिल जाती है। रोहिता महानदी के उद्गम, संगम आदि सम्बन्धी सारा वर्णन रोहितांशा महानदी जैसा है।
उस महापद्मद्रह के उत्तरी तोरण से हरिकान्ता नामक महानदी निकलती है। वह उत्तराभिमुख होती हुई १६०५५/.. योजन पर्वत पर बहती है। फिर घड़े के मुँह से निकलते हुए जल की ज्यों जोर से शब्द करती हुई, वेगपूर्वक मोतियों से बने हार के आकार में वह प्रपात में गिरती है। उस समय ऊपर पर्वत-शिखर से नीचे प्रपात तक उसका प्रवाह कुछ अधिक दो सौ योजन का होता है।
____ हरिकान्ता महानदी जहाँ गिरती है, वहाँ एक विशाल जिबिका-प्रणालिका बतलाई गई है ।वह दो योजन लम्बी तथा पच्चीस योजन चौड़ी है। वह आधा योजन मोटी है। उसका आकार मगरमच्छ के खुले हुए मुख के आकार जैसा है। वह सर्वरत्नमय है, स्वच्छ है।